
बसंत पंचमी पर आज प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन के स्याही माता मंदिर में उमड़ेगी आस्था, मान्यता है कि मंदिर में विराजित नील सरस्वती (स्याही माता) के दर्शन और अभिषेक से पढ़ाई में लगता है मन, अच्छे अंकों से पास होते हैं विद्यार्थी
अनिल मुकाती
उज्जैन. प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में हजारों मंदिर हैं। पौराणिक महत्व से जुड़े इन मंदिरों से कई जुड़ी कथा, किवदंतियां भी हैं। साथ ही भक्तों की अपार आस्था भी। ऐसे ही शहर में मां सरस्वती का प्राचीन मंदिर भी है। यहां मां नील सरस्वती का स्याही से अभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती प्रसन्न होती हैं और बुद्धि व ज्ञान का आशीर्वाद देती हैं। परीक्षा से पहले आने वाली बसंत पंचमी पर यहां दिनभर विद्यार्थियों की भीड़ नजर आती है। विद्यार्थी उच्च अंकों से पास होने की कामना लेकर यहां आते हैं।
मां वाग्देवी का यह अनूठा मंदिर सिंहपुरी में बिजासन पीठ के सामने हैं। इसे स्याही माता का मंदिर कहा जाता है। मां सरस्वती की मूर्ति चौरसिया धर्मशाला की दीवार पर विराजित हैं। कुछ साल पहले भक्तों ने यहां मंदिर बनवा दिया। बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की जयंती मनाई जाती है। इस दिन बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद लेने दूरदराज से भक्त यहां आते हैं। यहां आने वाले भक्त तन्मय चौधरी, रिंकू पटेल ने बताया कि मां नील सरस्वती का स्याही से अभिषेक पूजन करने से मन पढ़ाई में लगता है, ध्यान केंद्रित करने का संकल्प बलवती हो जाता है और सफलता मिलती है।
इस कारण होता है स्याही से अभिषेक
हिंदू सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक विद्यारंभ संस्कार को बसंत पंचमी पर किया जाता है। संगीत की गुरु-शिष्य परंपरा में भी बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहीं-कहीं मां सरस्वती को नीलवर्णी कहा गया है। भगवान विष्णु से आदेशित होकर नील सरस्वती भगवान ब्रह्म के साथ सृष्टि के ज्ञान कल्प को बढ़ाने का दायित्व संभाले हुए हैं। इसका उल्लेश श्रीमद देवी भागवत में मिलता है। नील सरस्वती के पूजन में नील कमल व अष्टर के नीले फूलों का उपयोग इसी कारण होता है। इन फूलों के अर्क से देवी का अभिषेक किया जाता है। समय के साथ इसमें परिवर्तन आया और फूलों के अर्क का स्थान नीली स्याही ने ले लिया।
एक हजार साल पुरानी है मां की मूर्ति
अपने आपमें अनूठी मां सरस्वती की यह मूर्ति परमारकालीन है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह मूर्ति करीब एक हजार साल से ज्यादा प्राचीन है।
Published on:
04 Feb 2022 06:00 pm
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