
दुनिया के उद्भव का अब तक 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख, 85हजार 125 वर्ष हो गए, इस दिन से प्रकृति में परिवर्तन होता है, सारे पर्व भी शुरू होते
जितेंद्रसिंह चौहान. उज्जैन। दुनिया को अगर शून्य की देन भारत की है तो कालगणना के रूप में विक्रम संवत उज्जैन की सौगात है। यह दुनिया का सबसे प्राचिनतम कालगणना है। इसी दिन से सृष्टि का उद्भव हुआ था और अब तक १ १ अरब ९५ करोड़ ५८ लाख, ८५ हजार १२५ वर्ष हो गए है। विक्रम संवत को उज्जैन का केंद्र बिंदु इसलिए भी है कि यहां से ही समय की उत्पत्ति हुई है और ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर का प्रार्दूभाव हुआ है। विक्रम संवत का महत्व इस मायने से भी है कि नए वर्ष से ही प्रकृति में परिवर्तन होता है और हमारे देश में इसी दिन सारे पर्व शुरू होते हैं। ऐसे में विक्रम संवत रूपी नया वर्ष महज उज्जैन ही नहीं बल्की पूरे देश और विश्व में भी मनाया जाना चाहिए। पत्रिका की एक रिपोर्ट...।
विक्रम सवंत २०७९..शनि राजा और गुरु होगा मंत्री
विक्रम संवत २०७९ कुछ दिन बाद यानी २ अप्रैल से शुरू होने वाला है। विक्रम संवत इस्वी से ५७ वर्ष आगे है। यानी जब इस्वी सहित अन्य कालगणना नहीं थी उससे पहले विक्रम संवत देशभर में प्रचलित था। इसी मान से तारीख का निर्धारण किया जाता था। विक्रम संवत में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, काार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन माह होते हैं। इस वर्ष विक्रम संवत में शनि राजा और गुरु मंत्री होंगे। यानी जिस दिन नव संवत का आरंभ होता है उस दिन के वार के अनुसार राजा का निर्धारण होता है।
उज्ज्जैन में अब यह दिन गौरव दिवस के रूप में
विक्रम संवत अब तक नए वर्ष के रूप में मनाया जाता रहा है। इस वर्ष से विक्रम संवत उज्जैन के गौरव दिवस के रूप में मनाया जाएगा। चूंकि विक्रम संवत की उत्पत्ति उज्जैन से हुई और फिर पूरी दुनिया में इसे गणना हुई है। आज भी विक्रम संवत सबसे सटिक और वैज्ञानिक कालगणना के रूप में माना जाता है । इसी आधार पर जयपुर के राजा संवाई जयसिंह ने उज्जैन में वेधशाला का निर्माण करवाया था।
यह है विक्रम संवत की खासियत
- विक्रम संवत में एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन किया गया।
- विक्रम संवत में महिने का निर्धारण सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा गया है।
- विक्रम संवत में १२ राशियां बारह सौर मास है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण किया गया है।
- चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से ११ दिन ३ घटी ४८ पल छोटो। इसलिए प्रत्येक तीन वर्ष में इसमें एक महीना जोड़ा जाता है। जिसे अधिकमास कहा जाता है।
राजा विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम संवत
विक्रम संवत का नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है। माना जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व ५७ में इसका प्रचलन शुरू किया था। सम्राट विक्रमादित्य ने शकों के अत्याचारी से शासन से मुक्त करवाया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से विक्रम संवत का आरंभ हुआ। विक्रम संवत को देश के साथ नेपाल में भी माना जाता है।
विक्रम संवत के दिन करें यह पूजा
विक्रम संवत के दिन सूर्योदय के समय उठकर किसी भी तीर्थ, मंदिर, नदी व तालाब किनारे शंख से ध्वनि का उद्घोष करें। सूर्य को जल अपर्कण करें। संवत्सरका पाठ करें व कलश तथा ध्वज की पूजा करें। ब्रह्मा, विष्णु व महेश की पूजा करें। इस दिन नीम की पत्तियों का वितरण करें।
इनका कहना
चैत्र शुक्ल का दिन श्रृष्टि के आरंभ और विक्रम संवत शुरू होने का दिन है । विक्रम संवत प्राचीन भारतीय की पूरे विश्व को कालगणना की देन है। यह इसलिए भी खास है कि उज्जैन कालगणना का केंद्र है और यहीं से इसकी उत्पत्ति हुई है। विक्रम संवत इस मायने में भी महत्वपूण है कि इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता, प्रकृति नया रूप लेती है। हमारे पर्व भी इसी दिन से शुरू होते है। विक्रम संवत को उज्जैन ही नहीं पूरे विश्व का मनाना चाहिए।
- पं. आनंदशंकर व्यास, ज्योतिषाचार्य
Published on:
27 Mar 2022 12:46 pm
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