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यंग अचीवर : तबले की थाप के साथ सुरों का जादू जगाया

तबला ही नहीं गायन में भी प्रतिभा

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Ujjain Desk

Jul 24, 2017

sanjay mishra

sanjay mishra

उज्जैन. माता-पिता को संगीत का शौक था और नाना भी गायकी में हुनर रखते थे। परिवार के इस माहौल ने संजय के मन में संगीत के प्रति रुचि जाग्रत की। बचपन में ही उन्होंने ग्वालियर घराने के मूर्धन्य गायक पं. दीपक पाठक के सान्निध्य में संगीत की शिक्षा प्रारंभ की। इसके पश्चात पं. मुकुंद भाले के साथ उन्होंने इंदिरा कला विश्वविद्यालय खेरागढ़ अपनी संगीत की शिक्षा को आगे बढ़ाया और तबले पर ताल देना प्रारंभ की।
तबले के साथ उन्होंने अपना रुझान भक्ति संगीत की ओर भी किया और दोनों में ही स्वयं को कुशल बनाने के प्रयास प्रारंभ किए। एमए में स्वर्णपदक प्राप्त करने के साथ ही उन्होंने संगीत की विधा में भी महारथ हासिल की। वर्ष 2003 से 2013 तक मप्र संस्कृति विभाग में तबला सहायक व्याख्याता के रूप में पदस्थ होने के साथ खेरागढ़ महोत्सव, श्रुति मंडल खेरागढ़, छत्तीसगढ़ राज्य महोत्सव में उन्होंने प्रस्तुति दी। डॉ. रूप दीक्षित, पं. जयदीप घोष, डॉ. सुनीता भाले, छगनलाल मिश्रा, प्रकाश पाठक, उमेश कंपूवाले, रूपकुमार सोनी, योगेश देवले, शुभाकर देवले आदि ख्यात कलाकारों के साथ वे प्रस्तुति दे चुके हैं। पिता पं. शेषमणि मिश्रा पुलिस विभाग में पदस्थ थे एवं मां रामकली मिश्रा घरेलू महिला है। संजय उज्जैन के माधव संगीत कॉलेज में व्याख्याता हैं।