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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा , 118 साल पहले गूंजा था नारा

सोभा सहगल ने कहा, नेता जी होते तो बाहर के तीन भाग नहीं होते। पाकिस्तान देश नहीं बन सकता था, वह तो अफगानिस्तान को भी भारत के नक्शे में देखना चाहते थे, लेकिन वह हो नहीं सका, क्यों कि नेता जी को साजिश के तहत मरवा दिया गया।

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UP Patrika

Jan 23, 2016

कानपुर.
काश! आज नेता जी हमारे बीच होते तो पाकिस्तान सहित हमारे विरोधी देश के आंतकवादी भारत में हमले करने की जुर्रत नहीं कर सकते थे। वह होते तो बाहर के तीन भाग नहीं होते। पाकिस्तान देश नहीं बन सकता था, वह तो अफगानिस्तान को भी भारत के नक्शे में देखना चाहते थे, लेकिन वह हो नहीं सका, क्यों कि नेता जी को साजिश के तहत मरवा दिया गया। यह बात शनिवार को सुभाषचन्द्र बोस की जयंती के अवसर पर आर्यनगर में कैप्टन लक्ष्मी सहगल की नातिन सोभा सहगल ने कही।


उन्होंने कहा कि
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा
। यह अनमोल वचन रंगून के जुबली हॉल में सुभाषचंद्र बोस द्वारा दिया ऐतिहासिक भाषण था, जिसे आज भी भारत के लोग गर्व से गुनगुनाते हैं। लेकिन नेता जी की मौत की मिस्ट्री पर आज भी संस्पेंस बरकरार है, नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाषचंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे।


आर्इसीएस बनने के लिए गए थे इंग्लैंड


नेताजी की प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कोलकाता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई और बाद में भारतीय प्रशासनिक

सेवा की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अंग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र भारत लौट आए।


जोशीले थे, गांधी से मतभेद


सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। सुभाषचंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे तो वहीं बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। गांधी और बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गाँधी और उनका मक़सद एक है। यानी देश की आज़ादी। सबसे पहले गांधी जी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था।


योजना आयोग का किया था गठन


1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गांधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी। 1939 में बोस पुनः एक गांधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए। गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया। उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमेटी से त्यागपत्र दे देंगे। गांधी जी के विरोध के चलते नेता जी ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की।

गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी।


सेक्रेट्ररी से किया था विवाह


सुभाषचंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक बेटी हुर्इ जिसका नाम अनीता था, जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं। नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया।


रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया

कैप्टन लक्ष्मी सहगल जिनका नाम सुनकर कभी अंग्रेजों के भी पसीने छूट जाया करते थे। वह आज हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन उनकी वीरता और दरियादिली के किस्से हमेशा लोगों के जहन में ताजा रहेंगे। कैप्टन सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 में मद्रास में हुआ था। एक कार्यक्रम के दौरान 1943 में उनकी मुलाकात नेताजी से हो गयी फिर क्या था लक्ष्मी के कैप्टन लक्ष्मी बनने का रास्ता साफ हो गया। कैसे उतरीं आज़ादी की लड़ाई में करीब एक घंटे की मुलाकात के बीच लक्ष्मी ने यह इच्छा जता दी कि वह उनके साथ भारत की आजादी की लड़ाई में उतरना चाहती हैं। लक्ष्मी के भीतर आजादी का जज्बा देखने के बाद नेताजी ने उनके नेतृत्व में रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट बनाने की घोषणा कर दी जिसमें वह वीर नारियां शामिल की गयीं जो देश के लिए अपनी जान दे सकती थीं। बस फिर क्या था कैप्टन लक्ष्मी भारत लौटीं और देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़ीं। उनके नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज की महिला बटालियन रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट ने कई जगहों पर अंग्रेजों से मोर्चा लिया और अंग्रेजों को बता दिया कि देश की नारियां चूडिय़ां तो पहनती हैं लेकिन समय आने पर वह बन्दूक भी उठा सकती हैं और उनका निशाना पुरूषों की तुलना में कम नहीं होता।


1943 में किया था आजाद हिन्द फौज का गठन


सुभाषचन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की तथा आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे। यहीं पर उन्होंने अपना
प्रसिद्ध नारा तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा दिया। 18 अगस्त 1945 को टोक्यो जापान जाते समय ताइवान के पास
नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया।

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