
After Prabodhini Ekadashi Bhishma is Worshipped Till Kartik Purnima
वाराणसी. After Prabodhini Ekadashi Bhishma is Worshipped Till Kartik Purnima. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में परंपराओं को पूरे विधि विधान से मनाने का पुराना रिवाज है। चाहे कोई त्यौहार हो या कोई पूजा, काशी में हर परंपरा को पूरे विधान से मनाया जाता है। इन्हीं में से एक है गंगा पुत्र भीष्म की पूजा जो कि सिर्फ काशी में होती है। यह एक अनोखी परंपरा है जिसमें पूजा करने के लिए घाट किनारे मिट्टी की अस्थायी बनी मूर्ति को आकार दिया जाता है। मान्यता है कि भीष्म पूजा से परिवार की सुख-शांति, समृद्धि और कष्टों से मुक्ति मिलती है। सुबह गंगा स्नान के बाद महिलाएं भीष्म की पूजा करती हैं। फूल, अक्षत और विभिन्न प्रकार के नैवेद्य चढ़ाए जाते हैं।
एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक पांच दिनों तक होती है पूजा
गंगा पुत्र भीष्म की पूजा के लिए वाराणसी के तमाम घाटों पर गंगा की मिट्टी से अस्थायी मूर्ति बनाकर पांच दिनों तक उनकी पूजा की जाती हैं। वाराणसी के तुलसी घाट, केदार घाट, रामघाट, पंचगंगा घाट के अलावा अन्य महत्वपूर्ण घाटों पर ये पूजा होती है। पांच दिन पंचांगों में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमासी तक भीष्म पंचक माना गया है। पंचक प्रबोधिनी एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक रहेगा। भीष्म नाम कार्तिक के अंतिम पांच दिन उनके दर्शन-पूजन करने श्रद्धालु आते रहते हैं।
वाराणसी में पूजा का महत्व
बनारस के केदार घाट, रामघाट और पंचगंगा घाट के किनारे गंगा पुत्र भीष्म की प्रतिमा गंगा की माटी से आकार दिया गया। घाट किनारे बनी प्रतिमा का दर्शन-पूजन भोर से ही शुरू हो जाता है। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही पुरानी परंपरा का आज भी निर्वहन हो रहा है। व्रती महिलाएं इसको करती हैं। वाराणसी में इस पूजन का बहुत ही महत्व बताया गया है।एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक मां गंगा का स्नान करने के बाद भीष्म की पूजा की जाती है। मान्यता है कि सिर छूने से बैकुंठ जाने का फल मिलता है। पैर छूने से तीर्थ जाने का फल मिलता है। हाथ स्पर्श करने से दान देने का फल मिलता है।
Published on:
19 Nov 2021 08:10 am
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