
मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली
वाराणसी. तीनों लोक से न्यारी ये काशी ही है जहां बहुत कुछ विलक्षण होता है। आखिरकार भूतभावन शंकर यानी बाबा विश्वनाथ की नगरी जो ठहरी। अपनी इस नगरी में बाबा विश्वनाथ ने जहां रंगभरी एकादशी को काशीवासियों संग अबीर-गुलाल संग होली खेली तो अगले दिन यानी मंगलवार को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर अपने प्रिय गणों, भूत-प्रेत, पिचास, गंधर्वों संग जलती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेली। ये दुनिया का सबसे चकित करने वाला पर्व है। ऐसा दुनिया के किसी कोने में नहीं होता। इसे देखने के लिए इस दिन को दूर-दूर से लोग काशी पहुंचते हैं। आज तो मणिकर्णिका घाट पर दोपहर बाद जैसे ही महाश्मशान नाथ के मस्तक पर गुलाल व भस्म लगाया गया उसके साथ ही मशाननाथ के जयकारे के साथ ही शुरू हो गई चिता भस्म की होली। इस बार खास ये रहा कि द्वारिका जी से आए संदेश के चलते श्री कृष्ण जी के भी पसंद के रंगों को भी इस होली में शामिल किया गया।
श्मशान घाट ही नहीं गलियां भी खचाखच भरी रहीं
आलम ये था कि महाश्मशान घाट पर तो भक्तों का सैलाब जमा ही था, आस-पास की गलियों में भी भक्तों की भारी भीड़ रही। मानों हर कोई बाबा विश्वनाथ के इस औघड़ स्वरूप का दर्शन कर उनके साथ मसाने की होली खेल आशीर्वाद पाना चाहता हो। ढोल-डमरू के नाद पर लोग थिरकते रहे तो एक तरफ लाउडस्पीकर से भक्ति गीत भी बज रहा था। ऐसे मे भला शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र का वो विख्यात गीत, बाबा खेलें मसाने में होरी... की धुन न सुनाई दे और उस पर नृत्य न हो ऐसा कैसे संभव होगा। तो काशीवासियों ने लगातार दूसरे दिन भी होली का जमकर आनंद उठाया।
यहां मृत्यु को भी मंगल माना जाता है, यहीं भोलेनाथ ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी
ये प्राचीन काल की परंपरा से चली आ रही है। शास्त्रों में उल्लिखित है कि महाश्मशान ही वो स्थान है, जहां वर्षों की तपस्या के बाद महादेव ने भगवान विष्णु को संसार के संचालन का वरदान दिया था। इसी घाट पर शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी। यह दुनिया की एक मात्र ऐसी नगरी है जहां मनुष्य की मृत्यु को भी मंगल माना जाता है। यहां शव यात्रा में मंगल वाद्य यंत्रों को बजाया जाता है।
औघड़ रुप में श्मशान घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता-भस्म की होली खेली
इसी महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर मंगवार को काशी विश्वनाथ ने अपने औघड़ रुप में जलती चिताओं के बीच चिता-भस्म की होली खेली। फिज़ा में डमरुओं की गूंज और हर-हर महादेव के उद्घोष। भांग, पान और ठंडाई की जुगलबंदी के साथ अल्हड़ मस्ती और हुल्लड़बाजी के बीच एक-दूसरे को मणिकर्णिका घाट का भस्म लगाया गया। यह दृश्य देखते ही बन रहा था। ये अद्भुत नजारा था। बीच-बीच में जोगीरा सारा... रास् रास् रास् का उद्घोष बनारसी होली का अलग अंदाज बता गया। बता गया कि बाबा विश्वनाथ की नगरी की ये है फाल्गुनी बयार जो भारतीय संस्कृति का दीदार कराती है।
सविधि हुआ पूजन
होली से पहले महाश्मशाननाथ सेवा समिति के अध्यक्ष चैनु साव व व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने महाश्मशाननाथ का विधि-विधान से पूजन अर्चन किया। फिर शुरू हुई चिता भस्म की होली। इस दौरान शवदाह को आए लोग भी यह मंजर देख चकित रहे। पर काशीवासी चिताभस्म होली खेलने में मग्न थे। भावों से ही प्रसन्न हो जाने वाले औघड़दानी की इस लीला का लुत्फ देसी-विदेशी पर्यटकों ने भी भरपूर उठाया।
लाउड स्पीकर से गूंजते रहे भजन
अबीर गुलाल से भी चटख चिता भस्म की फाग के बीच वाद्य यंत्रों व ध्वनि विस्तारकों पर गूंजते भजन माहौल में एक अलग ही छटा बिखेरती रही। जिससे इस घड़ी मौजूद हर प्राणि भगवान शिव के रंग में रंग गया। इस अलौकिक बृहंगम दृष्य को अपनी नजरों में कैद करने के लिए गंगा घाटों पर देश-विदेश के हजारों-लाखों सैलानी जूट रहे।
ये हैं मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी पर काशी विश्वनाथ माता गौरा कराने के बाद काशीवासियों को होली खेलने की अनुमति देते है और उसके अगले दिन श्मशान घाट पर महाश्मशान नाथ के रुप में अपने औघड़, भूत-प्रेत भक्तों साथ चिता भस्म की होली खेलते है।
Published on:
15 Mar 2022 02:26 pm
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