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काशी में गली से लेकर घाटों तक फैला है नशे का जाल, ऐसे होती बिक्री

धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस नशे की गिरफ्त में है। घाट हो या पक्का महाल की गलियां हर जगह नशा और नशा करने वाले मौजूद हैं।

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Varanasi Drugs

Varanasi Drugs

पत्रिका न्यूज नेटवर्क.
वाराणसी. धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस नशे की गिरफ्त में है। घाट हो या पक्का महाल की गलियां हर जगह नशा और नशा करने वाले मौजूद हैं। कला, संस्कृति और शिक्षा की नगरी में नयी पीढ़ी काली कमाई से बर्बाद हो रही है। बड़े पैमाने पर सैलानी भी नशे के जाल में फंसे हैं। इजराइल, चीन, जापान और मैक्सिको के सैलानी सबसे ज्यादा बनारस को नशे के लिए ही पसंद करते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह है यहां आसानी से नशा मिल जाता है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार-
बाबा विश्वनाथ के नाम पर गांजे की कश लगाने वाले अधिकांश साधु नशे के कारोबार के करियर हैं। बनारस बिहार और झारखंड को जोड़ता है। यहां से तस्कर नशे का सामान लेकर आसानी से काशी पहुंच जाते हैं। बांग्लादेश से हेरोईन पश्चिम बंगाल के रास्ते बनारस आती है। पाकिस्तान से नशे का सामान नेपाल के रास्ते यहां आता है। शहर में खपत होने के साथ ही यहां से नशे का सामान दूसरे शहरों और प्रदेशों तक पहुंचता है।

हर महीने बड़ी खपत-
राजस्व आसूचना निदेशालय यानी डीआरआई के अनुसार बनारस में नशे के कारोबार में कई अंतराज्यीय गिरोह सक्रिय हैं। यह गांजा, भांग, अफीम, हेरोइन, चरस का अवैध व्यापार कर रहे हैं। आए दिन इनकी गिरफ्तारियां भी होती हैं। एक आंकलन के अनुसार वाराणसी शहर में हर महीने करीब 30 कुंतल गांजा और 50 किग्रा हेरोइन की खपत हो रही है। जबकि, हर रोज दस हजार लीटर से अधिक अवैध शराब की सेल होती है। भांग की खपत तो कई कुंतल है। बिहार और बंगाल से आने वाले गांजे की खपत भांग के ठेकों पर होती है। जबकि, अवैध तरीके से अफीम और हेरोइन पुडिय़ों में बिकती है। हेरोइन की पुडिय़ा महिलाएं बच्चे उपलब्ध कराते हैं। घाटों पर मौजूद साधु वेशधारी भी नशे की तस्करी में अहम भूमिका निभाते हैं।

काशी में 'कश' आम बात

सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच करते-करते अब मामला हत्या या आत्महत्या से हटकर ड्रग्स के काले कारोबार पर केन्द्रित हो गया है। क्या सुशांत सिंह राजपूत गांजा का सेवन करते थे, क्या रिया चक्रवर्ती और उसका भाई उन्हें गांजा उपलब्ध कराते थे। इस सवाल को लेकर जांच एजेंसियां माथापच्ची कर रही हैं। जिस गांजे के 'कश' को लेकर इतनी कशमकश और हायतौबा मची हुई है काशी में वो 'कश' आम बात है। काशी के घाटों पर साधू से लेकर नशेड़ी तक आराम से चिलम उठाए 'कश' लगाते मिल जाएंगे।

काशी में लगभग 30 के आसपास भांग की लाइसेंसी दुकानें हैं। भांग की इन दुकानों की आड़ में चोरी छिपे गांजा की बिक्री होती है। काशी के घाटों पर दिन दहाड़े और रात के अंधेरे साधु, विदेशी और युवा कश खींचते मिल जाएंगे। घाट व घाट से सटी संकरी गलियों में नशे का सामान आसानी से मिल जाता है। कई विदेशी तो सिर्फ 'कश' लगाने के चक्कर में काशी की गलियों व घाटों की खाक छानते हैं। काशी में इसे बाबा का प्रसाद मानकर इसका सेवन करने वालों को खोजने की जरूरत नहीं। काशी में चवन्नी, अठन्नी और रुपया गांजे के लिये कोड वर्ड के रूप में इस्तेमाल होता है।

बीते सात अगस्त को ही वाराणसी एसटीएफ ने बनारस से सटे चंदौली में करीब पांच करोड़ मूल्य का गांजा बरामद कर तस्करों को गिरफ्तार किया। वाराणसी के जिला आबकारी अधिकारी करुणेन्द्र सिंह कहते हैं कि पुलिस और नारकोटिक्स विभाग के साथ सामंजस्य बनाकर गांजा की अवैध बिक्री पर अंकुश लगाने के लिये हम लगातार अभियान चलाते हैं।