25 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

गांधी जयंती पर विशेष-गांधी की एक अपील पर आचार्य कृपलानी संग 50 छात्रों ने छोड़ दिया था BHU

काशी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ से राष्ट्रपिता का रहा है खास लगाव, भारतीय राजनीति के अहम निर्णय भी गांधी ने यहीं लिए, 13 बार की काशी की यात्रा, जानिए बापू और काशी कनेक्शन का राज...

5 min read
Google source verification

image

Ajay Chaturvedi

Oct 02, 2016

Mahatma Gandhii and Mahamna Madan Mohan Malviya

Mahatma Gandhii and Mahamna Madan Mohan Malviya

डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और काशी का कनेक्शन बहुत पुराना है। देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी तथा काशी विद्यापीठ के साथ राष्ट्रपिता का गहरा तादात्म्य था। धार्मिक नगरी के साथ वह आस्था एवं विश्वास के साथ जुड़े थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कुल 13 बार काशी की यात्रा की। इस दौरान वह ज्यादातर काशी विद्यापीठ में ही रुक। गांधी की काशी यात्राओं का वाराणसी ही नहीं वरन् पूर्वी उत्तर प्रदेश और समूचे राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। राष्ट्रपिता की ही देन है काशी विद्यापीठ। दरअसल 1920 के कलकत्ता अधिवेशन में लिए गए असहयोग आंदोलन के बाद राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम के तहत असहयोग में शामिल विद्यार्थियों के लिए देश भर में विद्यापीठ खोले गए। इसमें काशी विद्यापीठ भी शामिल था। खादी और चरखे का संस्थागत आंदोलन शुरू हुआ जिसमें काशी विद्यापीठ, प्रथम गांधी आश्रम की स्थापना से जुड़ी सक्रिय गतिविधियों का केंद्र बना।


मोहन दास से महात्मा और राष्ट्रपिता का काशी कनेक्शन
मोहन दास करमचंद गांधी की
पहली यात्रा
एक तीर्थ यात्री के रूप में हुई। वह भी ऐतिहासिक बनारस कांग्रेस से दो साल पहले यानी 1903 में। तब वह भारतीय राजनीति के लिए अनजान चेहरा थे। काशी का धार्मिक आकर्षण उन्हें यहां तक खींच कर लाया था। काशी के पुरनिये बताते हैं कि तब काशी के पंडों की सक्रियता का कोपभाजन भी बनना पड़ा था बापू को।


महात्मा गांधी की दूसरी यात्रा
तीन फरवरी 1916 को वसंत पंचमी को हुई। तब वह मोहन दास करमचंद गांधी के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। वह तीन फरवरी को काशी आए और अगले दिन यानी चार फरवरी को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना समारोह में शरीक हुए। वह अवसर भी यादगार है, हुआ कुंछ यूं कि स्थापना समारोह शुरू हो चुका था, महाराजा दरभंगा की अध्यक्षता में कार्यक्रम अपने रौ में था, तभी एक स्वयंसेवक ने महामना मदन मोहन मालवीय को एक पर्ची पकड़ाई। पर्ची देखते ही महामना मंच से उतरे और समारोह स्थल के बाहर की ओर तेजी से निकल गए। लौटे तो उनके साथ घुटनों तक धोती, लंबा कुर्ता, कंधे पर झोला और लाठी लिए एक दुबले-पतले व्यक्ति को देख लोगों का कौतूहल बढ़ा। लेकिन थोड़ी ही देर में लोगों को पता चल गया कि ये और कोई नहीं बल्कि मोहन दास करमचंद गांधी हैं। वह जब भाषण देने आए तो उसकी शुरूआत ही तीखी थी, विषय था नगर को जेलखाने में तब्दील कर देने जैसी सुरक्षा का। दरअसल उन दिनों वायसराय बनारस में ही थे और दो साल पहले ही दिल्ली में वायसराय पर बम फेका गया था। माना यह जा रहा था कि आरोपी रासबिहारी बोस 1915 में जापान जाने के पूर्व बनारस में ही रुके थे और लाहौर षड़यंत्र केस के नायक शचींद्र नाथ सान्याल सरीखे क्रांतिनायक शिष्य पैदा किए थे। उसी बनारस में बीएचयू की स्थापना के लिए वायसराय के आगमन पर शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था। तब उन्होंने कहा था कि कोई बम फेक देता और वायसराय मारे जाते तो क्या ब्रिटिश साम्राज्य नष्ट हो जाता। ऐसे लाखों लोगों को घरों में कैद करना कहां का न्याय है। गांधी ने यहां तक कहा कि, एक व्यक्ति की सुरक्षा के लिए पूरे शहर को कैदखाना बना देना पड़े तो उससे बेहतर है कि वह व्यक्ति खुद मर जाए। उनके इस बयान पर एनी बेसेंट ने एतराज जताया तो गांधी का जवाब था कि आपके कहने से मैं चुप नहीं होने वाला। उन्होंने मंडप में बैठे राजा-महाराजाओं पर भी तल्ख टिप्पणी की। उसके बाद सभी ने वाकआउट कर दिया।


तीसरी यात्रा
के तहत वह 20 फरवरी 1920 को बनारस आए। अब तक वह भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर छा चुके थे। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय मे 21 फरवरी को छात्रों को संबोधित किया।


चौथी यात्रा
में वह 30 मई, 1920 को आए काशी। हिंदू स्कूल में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भाग लिया। बैठक की अध्यक्षता लाला लाजपत राय कर रहे थे। लोकमान्य तिलक भी थे मौजूद। देश जलिया वाला बाग कांड से आहत था। पंडित मोती लाल नेहरू ने जलिया वाला नरसंहार कांड की रिपोर्ट रखी। उसके बाद गांधी ने युगांतकारी असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम पहली बार यहीं रखा। प्रस्ताव पारित हुआ और गांधी ने काशी को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का साक्षी बना दिया।


पांचवीं यात्रा
24 नवंबर 1920 को हुई जिसमें वह तीन दिनों तक मालवीय जी के निवास पर रुके। तब वह असहयोग की दार्शनिकता के प्रचार के लिए आए थे। गांधी जी जिस असहयोग आंदोलन की बात कर रहे थे उसके तहत विदेशी सरकार से चलने वाली शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार भी था। इसके दायरे में बीएचयू भी आ रहा था। मालवीय जी बहिष्कार के विरोध में थे। ऐसे में एक ही छत के नीचे दोनों के विचारों के बीच गहरा मतभेद भी रहा। गांधी जी ने बीएचयू के टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज के हॉल में काशी के विशिष्ट लोगों के बीच अपना पक्ष रखा जो जनसंघर्ष का शंखनाद माना गया। बीएचयू से आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में 50 छात्र निकले और इसमे से अधिकांश ने कालांतर में काशी विद्यापीठ में दाखिला लिया। काशी विद्यापीठ के कुमार विद्यालय में चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में असहयोगी संस्कृत छात्र समिति बनी। असहयोग का अग्रणी श्री गणेश गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज बना परीक्षा बहिष्कार से।


छठवीं यात्रा
में वह 10 फरवरी 1921 को आए। यह मौका था काशी विद्यापीठ की स्थापना का। राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम के तहत गुजरात, पूना, बिहार विद्यापीठ और जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना हो चुकी थी। ऐसे में गांधी जी ने वसंत पंचमी के दिन 10 फरवरी 1921 को काशी विद्यापीठ की आधारशिला रखी। फिर 19 फरवरी को सभा कर काशी के छात्रों को असहयोग का मर्म, काशी विद्यापीठ की स्थापना का महत्व समझाया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय छ़ोड़ने के बाद आचार्य कृपलानी ने भी काशी विद्यापीठ में आचार्यत्व शुरू किया। यहीं से उन्होंने खादी एवं चरखे का संस्थागत संगठित आंदोलन शुरू किया।


सातवीं यात्रा
, के तहत गांधी 17 अक्टूबर 1925 को बलिया दौरे से लौटते हुए काशी आए। विद्यापीठ में रुके। छात्रों संग बैठक की। विद्यापीठ को देखा और नगर के एक राम मंदिर में भी गए।


आठवीं यात्रा
, आठ जनवरी 1927 की दोपहरी में बापू काशी पहुंचे। तब उनके साथ बा कस्तूरबा, बेटा देवदास गांधी तथा अन्य परिवारी जन थे। महामना मालवयी और शिव प्रसाद गुप्त सहित काशीवासियों ने उनका जोरदार स्वागत किया। विद्यापीठ के गांधी आश्रम में ठहरे। नौ जनवरी को बीएचयू में छात्रों को संबोधित किया। इसी दिन टाउनहाल में उनका नागरिक अभिनंदन हुआ। टाउनहाल में खादी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। 10 जनवरी को गंगा स्नान व काशी विश्वनाथ का दर्शन किया।


ये भी पढ़ें

image
नौवीं यात्रा
, 25 सितंबर, 1929 में वह काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में आए। गांधी जी का ही प्रभाव था कि दीक्षांत समारोह में पीले रंग का खादी का गाउन और हैट की जगह गांधी टोपी पहनी गई।

संबंधित खबरें


दसवीं यात्रा
, 27 जुलाई 1934 में जब वह आए तो छह दिन के लिए काशी विद्यापीठ में ठहरे। 28-29 जुलाई को हरिजन सेवक संघ के सम्मेलन में शरीक हुए। एक अगस्त को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रो का समूह उनसे मिला। दो अगस्त को हरिश्चचंद्र कॉलेज में महिलाओं की सभा को संबोधित किया। गांधी का यह सबसे लंबा काशी प्रवास था।


ग्यारहवीं यात्रा
, 25 अक्टूबर 1936 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर स्थित भारत माता मंदिर के उद्घाटन के लिए आए। नागरी प्रचारिणी सभा के कार्यक्रम में भी भाग लिया।


बारहवीं यात्रा
में वह काशी से हो कर गुजरे थे, रुके नहीं थे। मगर
तेरहवीं यात्रा
में वह 21 जनवरी 1942 को आए। वह मौका था काशी हिंदू विश्वविद्यालय की रजत जयंती समारोह का। तब समारोह के बाद उन्होंने कांग्रेसियों को पुनः काशी आने का आश्वासन तो दिया पर वह पूरा न हो सका।


नोट यह समस्त जानकारी काशी विद्यापीठ के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर सतीश राय, डॉ सुमन जैन व डॉ डीएन प्रसाद द्वारा उपलब्ध है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सूचना,जनसंपर्क एवं प्रकाशन समिति के निदेशक प्रो. राय ने यह विस्तृत जानकारी 2006 में विद्यापीठ के लिए प्रकाशित कराई थी।


ये भी पढ़ें

image