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फिल्मी सितारों जैसी मुस्कान पाना हुआ आसान, BHU ने ईजाद की सर्जरी की नई तकनीक

आईएमएस बीएचयू के दंत चिकित्सा संकाय ने दांतों को इम्प्लांट करने की आसान तकनीक को करा लिया है पेटेंट। अब कम समय और कम खर्च में पूरे दांत बदल जाएंगे। इससे चेहरे की खूबसूरती में आएगा निखार।

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bhu and madhuri (Symbolic photo)

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वाराणसी. चेहरे की खूबसूरती में दांतों का अहम योगदान होता है। चमकीले दांत चेहरे की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। महिला हो या पुरुष, युवक हो या युवती हर किसी की चाह होती है कि उसका चेहरा खूबसूरत दिखे। ऐसे में अगर किसी के दांत चमचमा रहे हों, एक साइज के हों तो क्या कहना। मोतियों जैसे दांत किसे अच्छे नहीं लगते। वर्तमान समय में तो इसकी सबसे ज्यादा डिमांड है। ऐसे में चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिंदू विश्व विद्यालय (आईएमएस, बीएचयू) ने हर आम और खास के लिए विशेष तकनीक इजाद की है जिससे उसके दांत उसके चेहरे की खूबसूरती को बढा देंगे।

आईएमएस बीएचयू ही नहीं दांतों को खूबसूरत लुक देने में आईआईटी बीएचयू का भी विशेष योगदान है। आईएमएस बीएचयू का दंत चिकित्सा संकाय और आईआईटी बीएचयू के धातुकीय अभियांत्रिकी विभाग ने मिल कर ऐसी तकनीक न केवल इजाद की है बल्कि उसका पेटेंट भी करा लिया है जो वर्तम समय में हर किसी के लिए फायदेमंद हो सकता है।

इन दोनों विभागों ने मिल कर दांतों को इम्प्लांट (दांत प्रत्यारोपण) करने की तकनीक को पेटेंट कराया है। इस नई तकनीक से दांतों का प्रत्यारोपण कराने में समय भी कम लगेगा और खर्च भी कम आएगा। पहले इसमें करीब छह हजार रुपये आता था।

विश्वविद्यालय की टीम ने कम समय और किफायती दंत प्रत्यारोपण के लिए कामर्शियल प्योरिटी (व्यावसायिक शुद्धता) टाइटेनियम पर अल्ट्रासोनिक शॉट पीनिंग विधि प्रयोग किया है। इसमें मानव कोशिकाओं के बराबर सतह के कणों को छोटा कर दिया जाता है, जो बोन फार्मिंग सेल्स इम्प्लांट सर्फेस अर्थात ओसियोइंटीग्रेशन के लिए एकदम उपयुक्त है। इससे प्रत्यारोपण में शरीर के तरल पदार्थ से होने वाला क्षरण भी कम होता है और प्रत्यारोपण के बाद टाइटेनियम से हड्डी से जुड़ने की प्रक्रिया जो तीन से चार माह में पूर्ण होती थी, उसमें एक-दो माह लगने लगेगा।

इस तकनीक से प्रत्यारोपण दो चरणों में होता है। पहले दांत के स्थान पर हड्डी तक ड्रिल करके टाइटेनियम इम्प्लांट लगाकर छोड़ दिया जाता है। तीन से चार महीने के बाद इंप्लांट के हड्डी से जुड़ने की प्रक्रिया ओसियोइंटीग्रेशन कहलाती है। इसके बाद इम्प्लांट के ऊपर कृत्रिम दांत लगाते हैं। प्राकृतिक दांत की तरह इससे भी सख्त खाद्य पदार्थ चबाए जा सकते हैं और यह देखने में भी खूबसूरत लगता है। हड्डी प्रत्यारोपण में भी इसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं। दो दशक पहले तक दंत प्रत्यारोपण के लिए टाइटेनियम के इम्प्लांट आयात करने पड़ते थे।

इस नई तकनीक पर आईआईटी बीएचयू के धातुकीय अभियांत्रिकी विभाग के प्रो. वकील सिंह के नेतृत्व में मास्टर आफ डेंटल साइंस की छात्रा डा. सीतू जिंदल ने 2008 में प्रयोग शुरू किया था। इसमें दंत चिकित्सा संकाय के डा. राजेश बंसल व प्रो. वीपी सिंह का निर्देशन रहा। 2010 में इसमें सफलता मिली। 25 मई 2011 को 'इफेक्ट ऑफ सर्फेस नैनोक्रिस्टलाइजेशन ऑन ओसियोइंटीग्रेशन ऑफ सीपी-टाइटेनियम' आविष्कार का पेटेंट फाइल करने के आठ साल के बाद 25 मई 2019 को इसकी स्वीकृति मिली है।

" अब तक भारत में अमेरिका, इज्राइल और दक्षिण कोरिया सहित अन्य देशों से इम्प्लॉंट का ही प्रयोग होता रहा है जो काफी महंगे हैं और केवल अमीर लोग ही इसका इस्तेमाल कर सकते थे। ऐसे में हम लोगों ने आम आदमी तक इसकी पहुंच बनाने की सोची और काम शुरू किया। अब फिलहाल 700 रुपये में यह इम्प्लॉंट उपलब्द्ध है। पेटेंट जरूर अब हुआ है लेकिन हम लोग बीएचयू में 7000 मरीजों का इम्प्लॉंट कर चुके हैं। प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ सिंह को पत्र लिखा है कि वो सरकारी अस्पतालों में इसका इस्तेमाल शुरू करा सकते हैं। अगर बड़ी तादाद में यह इम्प्लॉंट बनने लगा तो इसकी कीमत 700 से घट कर 300 रुपये हो जाएगी।"- डॉ राजेश बंसल