
वाराणसी/ग़ाज़ीपुर. शहर के बीचोबीच बसे गुरुबाग में मौजूद वनवासी बस्ती में हालात बद से बद्तर हैं। न किसी के पास पक्का मकान है और न शौचालय व बुनियादी जरूरत की सुविधाएं। महज ये एक बस्ती गाजीपुर जिला प्रशासन के उस दावे की पोल खोलने के लिये काफी है जिसमें जिले में बेघर दलितों और वनवासियों के न होने की बात कही गयी है।

न सिर्फ दावा किया गया है बल्कि प्रशासन ने प्रधानमंत्री आवासीय योजना के अन्तर्गत जिले में आए 2500 आवास सरकार को लौटा दिये हैं। वह भी तब जब सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार वनवासियों और दलितों को आवास देने की घोषणा कर रहे हैं।

खुद गाजीपुर में भी 50 हजार से ज्यादा वनवासी हैं जिन्हें सरकारी दस्तावेज के नाम पर महज निर्वाचन कार्ड का झुनझुना पकड़ाया गया है। इसके अलावा उनके पास न तो रहने को पक्का मकान है और न ही दूसरी सुविधाएं। विकास से कोसों दूर झुग्गी-झोंपड़ियों में रह रहे इन हजारों लोगों की मौजूदगी जिला प्रशासन के दावे पर सवाल खड़ा कर रही है।

आवास वापस किये जाने का मामला जब कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक सामने उठा तो वो भी दंग रह गए। इसको लेकर काफी सख्त दिखे और उन्होंने समीक्षा बैठक के दौरान डीएम और सीडीओ से मामले पर जवाब तलब किया। सीडीओ साहब ने मंत्री जी को जो जवाब दिया वह भी हैरानी भरा था।

उन्होंने कहा कि ढाई हजार प्रधानमंत्री आवासीय योजना के आवास इसलिये सरेंडर कर दिये गए, क्योंकि 2011 की रैंक सूची में उतने लाभार्थी ही नहीं मिले। वह भी तब जब गाजीपुर जिले में 50 हजार से ज्यादा वनवासी झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। इसको लेकर मंत्री जी जब सख्त हुए तो गाजीपुर के डीएम के बालाजी भी सफाई देते नजर आए।

कहा कि, चूंकि रैंक सूची के मुताबिक ही आवंटन होना था। और सूची में जितने एससी लाभार्थी थे उससे ज्यादा आवास आवंटन कर दिया गया, जिसके चलते आवास सरेंडर करने पड़े। जिलाधिकारी और सीडीओ की सफाई के बाद पत्रिका ने दो वनवासी बस्तियों में खुद जाकर वहां के लोगों के हालात का जायजा लिया।

इनमें से एक बस्ती रजदेपुर जिला मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर दूर है, पर वहां जाकर ऐसा लगा जैसे विकास की किरनें आजादी के बाद अब तक यहां नहीं पहुंचीं। वहां कई वनवासी परिवार आजादी के पहले से रहते चले आ रहे हैं।बावजूद इसके आज तक उन्हें झुग्गी-झोंपड़ी में ही गुजारा करना पड़ रहा है।

एक ही झोंपड़ी में पूरा-पूरा परिवार रहने को मजबूर है। शौचालय नहीं है सो खुले में शौच के लिये जाना मजबूरी है। दूसरी बस्ती शहर के बीचोबीच गुरुबाग में बसी है। यहां 20 वनवासी परिवार आजादी के पहले से रहते चले आ रहे हैं।