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सिंगूर भूमि अधिग्रहण पर सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला-वाराणसी की परियोजनाओं पर पड़ सकता है प्रभाव

15-20 साल पहले अधिग्रहीत भूखंडों पर अब तक शुरू नहीं हो सका है काम, रमना में तो उपजाऊ जमीन को कर लिया अधिग्रहीत. मोहनसराय में जबरन जमीन कब्जाने का आरोप, जानिए क्या है भूमि अधिग्रहण का सच...

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Ajay Chaturvedi

Aug 31, 2016

Land Acquisition

Land Acquisition

वाराणसी.
कोलकाता के चर्चित सिंगूर भूमि अधिग्रहण प्रकरण में बुधवार को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वाराणसी की विकास परियोजनाओं को भी लग सकता है झटका। यहां भी शासन-प्रशासन ने किसानों को बरगला कर अधिग्रहीत की हैं सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि। कई मामलों में अब तक नहीं मिल सका है मुआवजा। किसी भी किसान या उसके परिवार के सदस्य को नौकरी देने के प्रावधान का भी नहीं हो सका है पालन। मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना के तहत अधिग्रहीत की गई 242 एकड़ जमीन तो जबरदस्ती हड़प ली गई है।

रमना में उपजाऊ जमीन का किया गया है अधिग्रहण जबकि स्थानीय प्रशासन के पास है बंजर सरकारी जमीन। संकट मोचन फाउंडेशन जता चुका है आपत्ति।



वाराणसी की कई योजनाएं हैं वर्षों से लंबित

-मोहन सराय ट्रांसपोर्ट नगर-2003 में अधिग्रहण।

-आवास विकास की आवासीय योजना-2006 में अधिग्रहण। चितईपुर से जगतपुर तक के 18 गांवों की जमीन।

-रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट-2003 में 300 एकड़ भूमि का अधिग्रहण।

-सथवां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट-2006-07 में अधिग्रहण।

-दीनापुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट-1997-98 में अधिग्रहण।

-रिंग रोड-2003 में अधिग्रहण।

-हाईटेक सिटी योजना

-बाबतपुर एयरपोर्ट विस्तार योजना


रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
इसके अलावा रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जिसे हाल ही में केंद्र सरकार की मंजूरी मिली है। इसके लिए 2003 में तीन सौ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई थी। यहां अभी तक कोई काम शुरू नहीं हो सका है। इतना ही नहीं कास्तकारों की मानें तो यह उपजाऊ कृषि योग्य जमीन है। इसके अधिग्रहण के वक्त संकट मोचन फाउंडेशन ने आपत्ति भी जताई थी। फाउंडेश के अध्यक्ष प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र के अनुसार रमना की जमीन में सब्जी की खेती होती थी। यहां का बोड़ा, सेम आदि दूसरे प्रांतों को भेजा जाता रहा। फाउंडेशन ने अपनी आपत्ति में शासन-प्रशासन को बताया भी था इसके अलग बंजर सरकारी जमीन खाली पड़ी है वहां एसटीपी का निर्माण किया जाना चाहिए। मजेदार तो यह कि रमना में जल निगम की गंगा कार्य योजना इकाई ने जमीन ली एसटीपी के लिए और उसे नगर निगम के हवाले कर उसे कूड़ा डंपिंग ग्राउंड बना दिया गया है।


मोहन सराय ट्रांसपोर्ट नगर
किसान खेत मजदूर कांग्रेस कमेटी के प्रदेश संयोजक विनय राय मुन्ना ने पत्रिका को बताया कि मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना के तहत अधिग्रहीत की गई 242 एकड़ जमीन तो जबरदस्ती हड़प ली गई है। इस मामले में किसान खेत मजदूर कांग्रेस कमेटी की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पहले ही याचिका दायर की जा चुकी है। बताया कि 242 एकड़ जमीन के मालिक 1394 किसानों ने अब तक मुआवजा भी नहीं लिया है। वे एक इंच जमीन देने को तैयार नहीं है। मुन्ना बताते हैं कि इस योजना के लिए 1998 में गजट हुआ और 2003 में चुपके से स्थानीय प्रशासन की मदद से वाराणसी विकास प्राधिकरण ने जमीन से किसानों का नाम हटा कर उसे सरकारी जमीन घोषित कर दिया। उन्होंने बताया कि बुधवार को किसानों का प्रतिनिधिमंडल लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी मिला और किसानों की पीड़ा बयां करते हुए ज्ञापन सौंपा।


सथवां ट्रीटमेंट प्लांट
इसके अलावा सथवां में प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का विरोध 2013 में शुरू हुआ था जब बतौर

कांग्रेस महासिचव राहुल गांधी ने भट्टा पारसोल का मामला उठाया था। तब उनके वाराणसी आगमन पर कांग्रेस नेता विजय शंकर पांडेय ने ज्ञापन देकर किसानों के हित की लड़ाई में साथ देने का आग्रह किया था। हालांकि तब से अब तक सथवां में किसानों के विरोध के चलते ही एसटीपी निर्माण खटाई में पड़ा है।


रिंग रोड
रिंग रोड का मामला अभी भी गर्म है। हालांकि यहां के किसानों के लिए केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारों ने पहल की है और किसानों को नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत चार गुना मुआवजा देना मंजूर कर लिया है। लेकिन यह यह जमीन भी 2003 में अधिग्रहीत की गई और उस पर अब तक कोई काम शुरू नहीं हो सका।


आवास-विकास परिषद की आवासीय योजना जिसमें का मामला है। चांदपुर से लोहता, रोहनिया तक गांवों को मिला कर बनने वाली हाईटेक सिटी योजना है।

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क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर मामले में
बतादें कि सिंगूर में 100 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का मामला 2006 से न्यायालय के विचाराधीन रहा। इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यामूर्ति वी गोपाल गोवाडा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने नेनौ कार बनाने वाली कंपनी टाटा के साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार को करारा झटका दिया है। न्यामूर्ति वी गोपाल गोवाडा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने पश्चिम बंगाल सरकार को आदेशित किया है कि किसानों की जमीन को 12 हफ्ते में वापस किया जाए। दोनों न्यायमूर्ति ने अधिग्रहण को अवैधानिक करार दिया है। दोनों जजों ने माना है कि जमीन अधिग्रहण में विधिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।


क्या कहता है भूमि अधिग्रहण कानून
भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक किसी भी योजना के लिए अधिग्रहीत भूखंड पर अगर पांच साल तक कोई काम नहीं होता है तो वह जमीन किसानों को वापस हो जाएगी। अधिग्रहण के साथ किसानों को सर्किल रेट का चार गुना मुआवजा दिया जाएगा। साथ ही वहां जो परियोजना मूर्त रूप लेगी उसमें प्रभावित किसानों के परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी दी जाएगी।