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मुलायम सिंह यादव सपा का चेहरा था तो शिवपाल यादव पर संगठन को खड़ा करने की जिम्मेदारी थी। शिवपाल ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया ओर यूपी में सपा खड़ी हो गयी। राजनीतिक जानकारों की माने तो शिवपाल के पास संगठन को बनाने की बड़ी क्षमता है। यूपी चुनाव में शिवपाल की कम सक्रियता का खामियाजा सपा भुगत चुकी है। शिवपाल जानते थे कि किस नेता या कार्यकर्ता को कौन सी जिम्मेदारी देकर पार्टी को मजबूत किया जा सकता है।
2-अफसर नहीं कर पाते थे गुमराह
सीएम योगी आदित्यनाथ पर आरोप लगता है कि वह अफसरों की बातों में आ जाते हैं और सच्चाई नहीं देख पाते हैं जबकि शिवपाल यादव पर कभी ऐसा आरोप नहीं लगा था। सपा सरकार में शिवपाल यादव की मेहनत के चलते ही सपा के इतने जिला पंचायत जीतते थे। अफसरों पर शिवपाल यादव का इतना दबाव रहता था कि वह भ्रमित नहीं कर पाते थे।
3-सजातीय वोटरों पर अच्छी पकड़
युवा वर्ग भले ही अखिलेश यादव के साथ रहता है लेकिन पुराने समाजवादी के लिए मुलायम सिंह यादव व शिवपाल ही बड़े नेता है। यादव वर्ग को सत्ता की बागड़ोर देने में इन दोनों नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। सपा के पुराने वोटर आज भी मुलायम व शिवपाल को ही अपना नेता मानते हैं। ऐसे में शिवपाल यादव के अलग होने से सपा के कैडर वोटरों में बिखराव होना तय है।
4-छोटे दलों को जोडऩे की क्षमता
शिवपाल यादव में छोटे दलों को जोडऩे की भी क्षमता है। यूपी चुनाव में बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी कौएद को शिवपाल ने ही सपा से जोड़ा था बाद में अखिलेश यादव ने कौएद का विलय खत्म कर दिया था। वर्तमान राजनीति की बात की जाये तो पीएम नरेन्द्र मोदी को रोकने के लिए राहुल गांधी, मायावती व अखिलेश यादव का महागठबंधन बनने जा रहा है ऐसे में छोटे दलों की भी भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है और छोटे दलों को जोडऩे में सपा को शिवपाल यादव की कमी खल सकती है।
5-सत्ता चलाने का लंबा अनुभव
मुलायम सिंह यादव के साथ शिवपाल यादव को सत्ता चलाने का लंबा अनुभव है जिसका फायदा सपा को पहुंचता था। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए सपा पर आरोप लगता था कि सता के दो सीएम मुलायम सिंह यादव शिवपाल भी है। जो नेता सत्ता की नब्ज को समझता है वह सत्ता तक भी पहुंच जाता है। शिवपाल यादव का यह अनुभव भी उन्हें अन्य नेताओं से करता है।
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