कितने आराम से हैं कब्र में सोने वाले, कभी दुनिया में था फिर फिरदौस में, अब लेकिन कब्र किस अहले वफा की है अल्लाह-अल्लाह... ये पंक्तियां हैं मरहूम उमराव जान अदा की जिन्हें दुनिया एक तवायफ के रूप में ज्यादा और आजादी की दीवानी के रूप में कम जानती है। ये पंक्तियां फातमान स्थित कब्रिस्तान में उनकी कब्र की हकीकत भी बयान कर रही है, जो लगभग खंडहर हो चुकी है।