फिल्म में साकिब सलीम मुख्य भूमिका में हैं
वाराणसी. 1990 के दशक में गोरखपुर में एक गैंगस्टर था, नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला। महज 25 साल की उम्र में 20 से ज्यादा मर्डर, दहशत ऐसे कि यूपी से लेकर बिहार और नेपाल तक लोग कांपते थे । इस गैंगस्टर की कहानी जी 5 की वेब सीरीज रंगबाज में देखने को मिल रही है। फिल्म को लेकर मिला जुला रिस्पांस मिल रहा है।
फिल्म में साकिब सलीम मुख्य भूमिका में हैं, इसके अलावा रणवीर शौरी, अहाना कुमरा, तिग्मांशु धूलिया और रवि किशन भी नजर आ रहे हैं।
अब श्री प्रकाश शुक्ला की पूरी कहानी
गोरखपुर के ममखोर गांव में श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म हुआ था, पिता शिक्षक थे और श्रीप्रकाश पहलवानी करता था । 20 साल की उम्र तक सब सही चल रहा था। एक दिन मेले में गोरखपुर में राकेश तिवारी नामक व्यक्ति ने उसकी बहन को देख कर सीटी बजा दी थी इसी बात से नाराज होकर श्रीप्रकाश ने राकेश की हत्या कर दी। इसके बाद श्रीप्रकाश शुक्ला ने जयराम की दुनिया में कदम रखा तो पीछे मुडकर नहीं देखा। हत्या के मामले में जब श्रीप्रकाश को पुलिस तलाश रही थी तो वह किसी तरह बैंकाक भाग गया। वहां पर कुछ दिन ठहरने के बाद जब श्रीप्रकाश के पैसे खत्म हो गये तो वह वापस भारत आया। भारत लौटने के बाद श्रीप्रकाश सीधे बिहार के मोकामा में पहुंचा और वह सूरजभान के गैंग में शामिल हो गया। इसके बाद श्रीप्रकाश शुक्ला जरायम की दुनिया में तेजी से उभरता हुआ नाम बन गया। हत्या, किडनैप, रंगदारी सरकारी ठेकों पर सिर्फ और सिर्फ श्रीप्रकाश का कब्जा होता गया।
श्री प्रकाश शुक्ला के बारे में कहा जाता है कि वह यूपी में एक के 47 उपयोग करने वाला पहला अपराधी था और वह हमेशा अपने साथ एक के 47 लेकर चलता था । खौफ इतना कि पुलिस भी उससे डरती थी। कहा जाता है कि एक बार वह अपने साथियों के साथ लखनऊ जा रहा था । नाके पर चेकिंग के दौरान जब पुलिस वाले ने उनसे परिचय पूछा तो उसने एक के 47 दिखाते हुए अपना परिचय दिया । पुलिस पीछे हट गई । रेलवे के ठेके में जब श्रीप्रकाश शुक्ला ने हाथ डाला तो इस पर अपना एकाधिकार जमा लिया और रास्ते में आने वाले कई वीवीआईपी तक को ठिकाने लगा दिये।
1997 में लखनऊ में बाहुबली राजनेता वीरेंद्र शाही की हत्या ने श्रीप्रकाश शुक्ला को चर्चे में ला दिया। श्रीप्रकाश शुक्ला चिल्लूपार से चुनाव लड़ना चाहता था और वीरेंद्र शाही उसकी राह के कांटा थे। उसके बाद श्री प्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था। श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ लाल बत्ती कार में आया था और हत्याकांड में एके-47 का प्रयोग किया गया था। इन सभी घटनाओं ने उसे अपराध की दुनिया रातों रात सुर्खियों में ला दिया। यह भी कहा जाता है कि इतने अपराध की घटनाओं को अंजाम देने के बाद भी पुलिस के पास उसकी कोई तस्वीर नहीं थी । 1993 से 1998 तक श्रीप्रकाश शुक्ला का एकक्षत्र राज था ।
श्रीप्रकाश शुक्ला की मुश्किलें तब बढ़ गई जब खबर आई कि उसने यूपी के सीएम कल्याण सिंह की हत्या के लिये 6 करोड़ की सुपारी ली है । इस खबर के बाद यूपी में पहली बार एसटीएफ का गठन किया गया और 45 अपराधियों की सूची में जो टॉप पर नाम था, वह था श्रीप्रकाश शुक्ला ।
मोबाइल फोन पर गर्लफ्रेंड से घंटों करता था बात और यही बनी मौत की वजह
श्रीप्रकाश शुक्ला मोबाइल का भी शौकीन था और वह घंटों मोबाइल फोन पर बात करता था और यही उसकी मौत की वजह बन गई। पुलिस लगातार उसके पीछे लगी थी, पुलिस ने सर्विलांस पर उसका फोन लगाया और उसकी जानकारी निकाली और 22 सितंबर 1998 को गाजियाबाद में घेराबंदी कर उसे मार गिराया ।