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कलेक्टर साहब! देख लो मैं जिंदा हूं… आखिर खुद को जीवित साबित करने को क्या करूं

कलेक्टर साहब? देख लो मैं मरा नहीं हूं...जिंदा हूं... लेकिन पोर्टल पर मुझे मार बता दिया गया है। इस कारण अपने खून-पसीने की कमाई का उपयोग नहीं कर पा रहा हूं, न ही पीएम किसान सम्मान निधि का लाभ ले पा रहा हूं। अधिकारियों और सरकारी दफ्तरों की ठोकरें खा-खाकर परेशान हो चुका हूं। आपके आदेश के बावजूद अधिकारी मुझे कागजों में जिंदा नहीं कर रहे हैं।

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आगर-मालवा/कानड़. कलेक्टर साहब? देख लो मैं मरा नहीं हूं…जिंदा हूं… लेकिन पोर्टल पर मुझे मार बता दिया गया है। इस कारण अपने खून-पसीने की कमाई का उपयोग नहीं कर पा रहा हूं, न ही पीएम किसान सम्मान निधि का लाभ ले पा रहा हूं। अधिकारियों और सरकारी दफ्तरों की ठोकरें खा-खाकर परेशान हो चुका हूं। आपके आदेश के बावजूद अधिकारी मुझे कागजों में जिंदा नहीं कर रहे हैं।
यह पीड़ा है कानड़ निवासी लकवाग्रस्त कृषक नारायण पिता कन्हैयालाल खाती बीजापारी की। नारायण बोले, मेरा जिला साख कृषि संस्था एवं जिला सहकारी बैंक की शाखा कानड़ में खाता है। खेती किसानी के काम इन्हीं खातों से होते हैं। समर्थन मूल्य पर उपज बेची, जिसकी राशि खाते में जमा हो गई। खाद्य आपूर्ति एवं जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पोर्टल पर मुझे मृत घोषित कर दिया गया, जिसके कारण उपज बेचने पर खाते में आई राशि के उपयोग के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा हूं, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री सम्मान निधि भी लंबे समय से नहीं मिल पा रही है।


सीएम हेल्पलाइन, जनसुनवाई में लगा चुके गुहार
लकवाग्रस्त बीजापारी लडख़ड़़ाते १६ मई को कलेक्टर कैलाश वानखेड़े के समक्ष जनसुनवाई में पहुंचे और आपबीती सुनाई। कलेक्टर ने अधिकारियों को समस्या निदान के आदेश दिए, लेकिन आज तक कार्रवाई नहीं हुई। बीजापारी ३ माह से सीएम हेल्पलाइन पर न्याय की गुहार लगा रहे हैं। बेटा संजय भी अधिकारियों से मदद की गुहार लगा रहा है लेकिन न्याय नहीं मिल रहा है।


बेटे को दुत्कार रहे अधिकारी
नारायण के बेटे संजय अधिकारियों के समक्ष अपने पिता के जीवित होने पर दस्तावेजों में भी जिंदा करने की गुहार लगाते हैं, तो अधिकारी समाधान करने की बजाय दुत्कार देते हैं। संजय मंगलवार को खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के जिला कार्यालय में पहुंचे तो अधिकारियों ने डांट-डपटकर रवाना कर दिया।


कलेक्टर का 19 मई का आदेश भी खा रहा धूल
16 मई को जनसुनवाई में की शिकायत पर कलेक्टर ने १९ मई को तहसीलदार आगर एवं जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी को पत्र के माध्यम से नारायण बीजापारी को दस्तावेजों में जीवित करने के आदेश दिए, लेकिन यह निर्देश-आदेश भी सरकारी दफ्तरों में धूल खा रहे हैं। कलेक्टर ने स्पष्ट निर्देश दिया कि आवेदक को किसान सम्मान निधि की १ से लेकर ६ किस्तों का भुगतान नहीं हो पाया है वहीं खाद्य आपूर्ति पोर्टल पर मृत घोषित आ रहा है। इस संबंध में जांच कर यथाशीघ्र प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।


अब, कैसे बताऊं कि मैं जीवित हूं
नारायण बोले, मुझे जीते जी ही मृत बता दिया गया है। अब खुद को जीवित घोषित कराने के लिए संघर्ष कर रहा हूं। मेरी फसल राशि नहीं निकाल पा रहा हूं। जीवित होने का शपथ-पत्र तैयार कर कलेक्टर से न्याय की गुहार लगाई लेकिन आज तक निराकरण नहीं हुआ। मेरे बैंक खाते से पैसे नहीं निकलने से परिवार का पालन पोषण मुश्किल हो चुका है। मैं लकवाग्रस्त हूं, आखिर कैसे सिद्ध करूं कि साहब मैं जिंदा हूं।

अफसरी का फसाना…जिसकी लाठी, उसकी भैंस
पत्रिका टिप्पणी : दुर्गेश शर्मा
जिले में ऐसी लापरवाही कोई नई बात नहीं है। एक अरसे से देखा जा रहा है कि सरकारी दफ्तरों में आम आदमी को सामान्य कामकाज कराने के लिए भी जोर लगाना पड़ता है। हालात ये हैं कि कई लोग हताश होकर घर बैठ चुके हैं। जवाबदार सीधे मुंह बात करना पसंद नहीं करते। कलेक्टर जिले में नवाचार करते हुए सकारात्मक प्रयास कर रहे हैं पर उनके प्रयासों पर पलीता लगाने में मैदानी अमला कसर नहीं छोड़ रहा। छोटे किसान से लेकर बड़े व्यापारी तक की यही स्थिति है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस कहावत को कई अधिकारी चरितार्थ कर रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा की स्थितियां जनता से छिपी नहीं है। राजस्व में जो चल रहा है, वह जनचर्चा का विषय है। अधिकारियों के समक्ष तो जनप्रतिनिधि बौने साबित हो चुके हैं। जनप्रतिनिधियों की स्थिति यह है कि अधिकारी उनका फोन उठाना भी मुनासिब नहीं समझते। कई जनप्रतिनिधि अपना काम मध्यस्थ से करा रहे हैं। चाहे वह सत्ताधारी दल के नेता हों या विपक्ष के। कानड़ का यह मामला भले दस्तावेज की गलती का हो लेकिन लकवाग्रस्त किसान को दर-दर की ठोकरें खाने को सरकारी अमले ने मजबूर कर दिया है। नारायण बीजापारी जैसे कई किसान लाचार हैं, जिन्हें समर्थन मूल्य पर बेची उपज की राशि प्राप्त नहीं हुई है। लाचार किसान को दस्तावेज में मृत घोषित कर दिया गया और सरकारी अमला तमाशा देख रहा है। अधिकारियों की उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि कलेक्टर ने १९ मई को आदेश दे दिया लेकिन आज तक अमल नहीं हुआ है। जब अधिकारी कलेक्टर के निर्देश पर अमल नहीं कर रहे तो आम आदमी की पीड़ा पर सुनवाई की अपेक्षा करना तो बेमानी होगी। आशा है, जिम्मेदारों के कानों पर जूं रेंगेगी और आगर की व्यवस्थाएं पटरी पर लौट सकेंगी।