मालाखेड़ा दिवाली का पर्व आज भी परंपरागत तरीके से “फिस्ट ऑफ लैम्पटर्न्स” के रूप में मनाया जाता है, जिसकी तैयारियां धनतेरस से शुरू होती हैं। अलवर रियासत के महाराजा सवाई जयसिंह के समय से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें अंधकार को मिटाकर रोशनी फैलाने का संदेश है।
धनतेरस से दीपावली तक राजघराने, जागीरदार और ताजीमी सरदार पांच दिवसीय पर्व को उत्साह से मनाते हैं। जमालपुर ठिकाने के ठाकुर शिवराम सिंह के अनुसार, रियासत काल में कार्तिक अमावस्या का कैलेंडर राजघराने से जारी होता था और महल, बाजार व बावड़ियों को लालटेन और गैस लैंप से रोशन किया जाता था।
दीपावली पर महाराजा सिटी पैलेस के तोषखाने में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा कर दरबार में मिठाइयों का वितरण करते थे। अगले दिन खाता-बही की पूजा के दौरान गणेश और कुबेर की आराधना की जाती थी।
1879 से 2024 तक की पुरानी करेंसी के पूजन की परंपरा अब भी जारी है। मथुरा, वृंदावन और इस्कॉन के भक्त इस ऐतिहासिक परंपरा को देखने आते हैं। ठाकुर उपेंद्र सिंह द्वारा भी बुर्जा ठिकाने में पुरानी तिजोरी की धनतेरस से दीपावली तक पूजा की जाती है।