भिवाड़ी. होली की पूर्णिमा से शुरू हुआ काली खोली धाम वाले बाबा मोहनराम का लक्खी मेला गुरुवार को दौज पर खूब जोर से भरा। बड़ी संख्या में भक्तों ने बाबा के धाम में हाजिरी लगाकर अखंड ज्योत के अलौकिक दर्शन किए। खोली धाम में भक्तों का सैलाब उमड़ा। अखंड ज्योत की लौकिकता ने भक्तों को ऊर्जा प्रदान की। दरबार में गूंजते बाबा की जय-जयकार से भक्तों का उत्साह बढ़ता गया। भजनों की स्वर लहरियों से मन प्रसन्न हो गया। बाबा के वार्षिक मेले में भक्त मन्नत मांगकर प्रसन्नचित भाव से लौटते दिखे। तीन दिवसीय मेले में रात-दिन पदयात्रा और वाहनों से बड़ी संख्या में भक्तजन खोली धाम में पहुंचे। खोली को जाने वाले रास्तों पर जगह-जगह भंडारे लगाकर भक्तों को प्रसादी खिलाई गई। मिलकपुर मंदिर से काली खोली धाम तक भक्त जन दर्शन करने आते रहे। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश सहित देश के अलग-अलग हिस्सों से आए भक्तों ने बाबा के धाम में डेरा डाला और भजन कीर्तन किया। भक्तों ने सडक़ किनारे टेंट लगाकर भंडारे किए, भजन-कीर्तन कर बाबा का गुणगान किया। बाबा मोहनराम के भक्तों का असली सैलाब गौरवपथ से काली खोली धाम वाले रास्ते पर दिखा। इस रास्ते से जुडऩे वाले अन्य रास्तों से भक्तों की टोलियां आते हुई दिखीं। खोली वाले से कुछ भक्तों की आस्था की डोर इतनी मजबूत थी कि वे दण्डौती और पेट पलनियां करते हुए खोली वाले के दरबार में पहुंचे। दौज के अवसर पर पुण्य फल प्राप्त करने के लिए भक्तों ने खोली धाम की परिक्रमा लगाई। मेले की व्यवस्थाओं को संभालने में ट्रस्ट प्रबंधन के साथ पुलिस-प्रशासन के अधिकारी भी मुस्तैद रहे। एसडीएम महेंद्र यादव ने बताया कि इस बार मेले में करीब 10 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किए, वहीं ट्रस्ट अध्यक्ष अमर भगत ने बताया कि तीन दिवसीय मेले में 20 लाख से अधिक भक्तों ने दर्शन किए।
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मेले में बिछड़े 24 बच्चों को खोजकर अभिभावकों से सौंपा
भिवाड़ी. मेले में माता-पिता और परिजनों से अलग हुए बच्चों को मिलाने की जिम्मेदारी हेड कांस्टेबल सुभाष चंद ने बखूबी निभाई है। हेड कांस्टेबल तीन दिवसीय मेले में 24 घंटे ड्यूटी पर तैनात रहे और बिछड़े हुए 24 बच्चों को उनके माता-पिता से मिलाया। सादा वस्त्रों में ड्यूटी की जिससे कि खोए हुए बच्चों को डर न लगे। उन्हें अपने पास बिठाकर चॉकलेट और आइसक्रीम खिलाई जिससे कि उन्हें अपनापन महसूस हो सके। एसपी ऑफिस में तैनात हेड कांस्टेबल ने बताया कि उनका पूरा ध्यान मेले में उन बच्चों पर रहा जो कि भीड़ की वजह से परिजनों से अलग हो गए थे। ऐसे बच्चे रोते-बिलखते हुए मिले। उन्हें प्यार-दुलार देकर समझाया और उनके अभिभावकों से मिलाया। उन्होंने लगातार मेले में गश्त की। ऐसे क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया जो कि सुनसान और एकांत वाले थे।