अविभाजित मध्यप्रदेश में जब नागपुर राजधानी हुआ करती थी, तब 4 अगस्त 1889 को कामठी में ई राघवेन्द्र राव का जन्म हुआ। राघवेन्द्र राव का परिवार आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले के निवासी थे और व्यापार के सिलसिले में बिलासपुर में आकर बस गए थे। अल्प आयु से ही वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रीय रहे। इन्होंने 1906 में कोलकाता, 1907 में सूरत में कांग्रेस के अधिवेशन में बिलासपुर का प्रतिनिधित्व किया था। और 1914 में ई राघवेन्द्र राव ने लंदन से वकालत करने के बाद स्वदेश लौटे थे। 1915 में नरम दल और गरम दल में मध्यक्षता का काम किया और वकालत का त्याग कर देश की आजादी में जुट गए।
यहां से भरा लोगों में देश भत्ति का जज्बा
अंग्रेजों ने 1861 में बिलासपुर को जिला बनाया था। ई राघवेन्द्र राव बिलासपुर नगर पालिका के अध्यक्ष बने और कौंसिल के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोल शुरू किया। जिला परिषद के सचिव भी बनाए गए। दोनो परिषदों में उन्होंने कर्मचारियों के लिए खादी पहनना अनिवार्य कर दिया था। गांधी और तिलक जयंती पर अवकाश घोषित किया। स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में राष्ट्रीय ध्वज फहराने और स्कूलों में वंदेमातरम गीत गाना अनिवार्य किया।
रतनपुर से कई युवा हुए थे गिरफ्तार
राष्ट्रीय आंदोलन के लिए लोगों में जोश भरने ई राघवेन्द्र राव ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनके ओजस्वी भाषण के कारण युवाओं में जोश उमड़ा और रतनपुर में युवाओं ने एक कार्यक्रम में वंदेमातरम के नारे लगाए। यहां से अंग्रेजों ने करीब 50 से अधिक युवाओं को गिरफ्तार किया था।
अब यादें सिर्फ किताबों तक सीमित
शहर से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में ई राघवेन्द्र राव का नाम भी शामिल था, इनके कारण ही राष्ट्रीय अधिवेशन में बिलासपुर की पहचानक राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची थी। डेढ़ सौ वर्षों से अधिक समय बीत चुका है और शहर वासियों में चुनिंदा पुराने लोग ही ई राघवेन्द्र राव और उनकी उपलब्धियों को जानते हैं। उन्हें याद करने वालों की संख्या कम है और यादें हैं तो सिर्फ किताबों तक सीमित हैं। 25 मई 1942 को ई राघवेन्द्र का निधन हो गया।
परिजनों का होना चाहिए सम्मान
ई राघवेन्द्र राव के तीन बेटे ई नागेश्वर राव बड़े, मंझले ई चन्द्र शेखर राव और ई अशोक राव। सबसे बड़े बेटे ई नागेश्वर राव के बेटे ई रमेन्द्र राव शहर में ही रहते हैं। ई रमेन्द्र राव ने बताया कि वे दादा ई राघवेन्द्र राव की उपलब्धियों को वे गिनाना नहीं चाहते । सभी जानते हैं कि वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थी। उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देने वाले कुछ ही बचे हैं। प्रशासन को चाहिए कि कम से कम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार के सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर होने वाले समारोह में सम्मानित किया जाए।