चूूरू. घर की जरूरत हो या अन्य कोई काम आम आदमी सहित धनाढ्य लोगों को भी रुपए की आवश्यकता पड़ जाती है। हालांकि आज के समय में ऐसे कई बैंक व फाइनेंस कंपनियां है जो रुपए के बदले में तय ब्याज लेकर व्यक्ति को उधार देती है। लेकिन आज से करीब दो सौ साल पहले ऐसे कोई बैंक या कंपनियां नहीं थी। उस समय बडे सेठ-साहूकार ही जरूरत के बदले में लोगों को किसी चीज को गिरवी रखने के बदले में रुपए देने का काम किया करते थे। सेठ-साहूकारों का राज दरबार में बड़ा मान-सम्मान होता था। बताया जा रहा है कि करीब दो सौ साल पहले चांदी का रुपया प्रचलन में था, सबसे बड़ा सिक्का एक रुपए का हुआ करता था।
नगरश्री के सचिव श्याम सुन्दर शर्मा बताते है कि करीब दो सौ साल पहले तत्कालीन बीकानेर के शासक सूरत सिंह को किसी काम के बदले में रुपए की आवश्यकता पड़ गई। उन्होंने बताया कि चूरू के सेठ-साहूकार का काफी नाम था जो आस-पास की स्टेट में भी रुपए उधार देने का काम किया करते थे। शर्मा ने बताया कि तत्कालीन शासक सूरतसिंह ने चूरू के सेठ मिर्जामल पोदार के पास संदेश भिजवाया। संदेश में उन्होंने किसी कार्य के चलते चार लाख रुपए उधार देने की बात कही। नगरश्री के सचिव शर्मा ने बताया कि सेठ ने तत्कालीन शासक को रुपए उधार दे दिए। बताया जा रहा है कि तत्कालीन समय में शासक की ओर से गांवों में टैक्स की वसूली की जाती थी। इस पर शासक ने उधार लिए रुपए चुकता नहीं होने तक ब्याज नहीं देकर उनकी रियासत के अधीन आने वाले गांवों से टैक्स वसूलने का अधिकार सठे मिर्जामल को दिया था। तत्कालीन शासक व सेठ के बीच रुपए के लेन-देन के करार का दस्तावेज आज भी नगरश्री में मौजूद है।