लोगों को मंत्रियों से बड़ी उमीदें हैं….. सुविधाओं व संसाधनों को ध्यान में रखकर काम करना होगा बड़ी चुनौती होगा…..जिन्होंने विकास और सुविधाओं के विस्तार की संभावनाओं को ध्यान में रखकर वोट दिया है उनकी उम्मीदों पर खरा उतरा एक बड़ी चुनौती है सरकार के सिपहसालारों के सामने
सिपहसालार तैयार, जनता को विकास का इंतजार
23 में से 17 विधायकों को पहली बार मंत्री की कुर्सी मिली
जोश से लबरेज…लेकिन अधिकारियों की बात समझना बड़ी चुनौती
आठ मंत्री तो स्नातक पास भी नहीं
पांच केबिनेट मंत्री नहीं है स्नातक पास
ब्यूरोकेसी के दावों से बचना भी एक बड़ी चुनौती
प्रदेश के सभी मंत्री किसी न किसी बड़े नेता के नजदीक माने जातेहैं। वहीं एक तिहाई यानी 8 मंत्री स्नातक तक भी पढ़े-लिखे नहीं है। ऐसे कैबिनेट मंत्रियों की सं या ५ है। पिछले कई दशकों से कांग्रेस के लिए काम करने वाले वरिष्ठ विधायकों के स्थान पर इस बार नए विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। ये नए विधायकों के लिए चुनौती रहेगी कि वो न केवल जनता की उ मीदों पर खरा उतरे, बल्कि संगठन में भी अपना स्थान बना पाने में सक्षम हों। साथ ही पिछली सरकार
में जिन मंत्रियों पर यह आरोप लगते रहे कि वो लोगों से मिलने नहीं पहुंचे। रोजगार उपलब्ध नहीं कराया और जरूरतें पूरी नहीं की। इस बार ये सभी मुद्दे पूरे करने होंगे। सबसे पहले बात करते हैं केबिनेट मंत्रियों की
सरकार के तेजतर्रार नेताओं में शामिल शांति धारीवाल सबसे अनुभवी नेता है….लेकिन धारीवाल के सामने भी बड़ी चुनौती है बड़बोलापन, जल्दी गुस्सा आना, कार्यकर्ताओं को आगे नहीं बढऩे देना….इसी वजह से पिछली सरकार में भी मुख्यमंत्री को खासी परेशानी हुई….वहीं दूसरे वरिष्ट नेता बीडी कल्ला के मिलनसार और काम के प्रति निष्ठा है लेकिन सत्ता और संगठन में सामंजस बैठाना एक बड़ी चुनौती रहेगा…. भरतपुर से आने वाले विश्वेंद्र सिंह जिला प्रमुख, तीन बार सांसद व तीसरी बार विधायक बने हैं…. लेकिन बड़ी चुनौती हैपार्टी के खिलाफ ही बयान देना, जिले से बाहर कम जाना…इसी के साथ गुस्सा नाक पर होना वहीं लालचंद कटारिया केंद्र में मंत्री रहे हैं लेकिन अधिकारियों की बातों में आना बड़ी कमजोरी है…रमेश मीना पढ़े लिखे अनुभवी नेता है….लेकिन विपक्ष का सम्मान नहीं करना और क्षेत्र में ज्यादा काम नहीं होने से लोग नाराज है इस नाराजगी को दूर करते हुए संगठन से सामंज्य बैठाना होगा….
परसादीलाल मीना, मास्टर भंवर लाल मेघवाल, रधु शर्मा,प्रमोद जैन भाया,हरिश चौधरी,रमेशचंद मीना उदयलाल आंजना, प्रतापसिंह खाचरियावास और सालेह मोहम्मद के सामने भी संगठन और सत्ता के साथ सामंजस्य बैठाना एक चुनौती होगा जहां तक बात करे राज्यमंत्रियों की तो गोविंद सिंह डोटासरा, ममता भूपेश, अर्जुन बामनिया, भंवर सिंह भाटी,सुखराम विश्नोई, अशोक चांदणा, टीकाराम जुली, भजनलाल जाटव, राजेंद्र सिंह यादव किसी के पास भी अनुभव नहीं है ऐसे में करीब एक से डेढ़ साल तो अधिकारी और सरकारी प्रक्रिया समझने में निकलना तय मानिए…ऐसे में जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं यह आने वाला वक्त तय करेगा