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जयपुर का ऐतिहासिक बाजार ‘गणगौरी बाजार’ के बारे में जानिए ऐतिहासिक जानकारी

जयपुर शहर को हेरिटेज सिटी यूं ही नहीं कहा जाता यहां हर कदम पर विरासत के निशां है। ब्रह्मपुरी से छोटी चौपड़ को जोड़ने वाले मार्ग को गणगौरी बाजार कहते हैं। यह एक प्राचीन रास्ता है। यहां पहले बाजार इतना विकसित नहीं था लेकिन समय के साथ यहां एक अच्छा खासा बाजार डवलप हो चुका है। गणगौरी बाजार में स्थित हैं एक प्राचीन दरवाजा जिसको गणगौरी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है।

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जयपुर।

समृद्ध भवन निर्माण,परंपरा,विरासत और संस्कृति की लिए जयपुर की अपनी एक पहचान है। जयपुर के स्थापत्य,कला और संस्कृति पर यूनेस्को की भी मुहर लग गई है। यूनेस्को ने जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया है। ऐसे में पत्रिका ने शुरू की है ‘परकोटे की परिक्रमा’ इस परिक्रमा पर आज आपको दिखा रहे हैं जयपुर की चारदिवारी यानि परकोटे और गणगौरी बाजार के बारे में।

जयपुर शहर को हेरिटेज सिटी यूं ही नहीं कहा जाता यहां हर कदम पर विरासत के निशां है। ब्रह्मपुरी से छोटी चौपड़ को जोड़ने वाले मार्ग को गणगौरी बाजार कहते हैं। यह एक प्राचीन रास्ता है। यहां पहले बाजार इतना विकसित नहीं था लेकिन समय के साथ यहां एक अच्छा खासा बाजार डवलप हो चुका है। गणगौरी बाजार में स्थित हैं एक प्राचीन दरवाजा जिसको गणगौरी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल जयपुर शहर में एक विशेष उत्सव मनाया जाता है। उसी उत्सव के कारण इस जगह को गणगौरी बाजार के नाम से जाना जाता है।

जयपुर शहर ऐतिहासिक दृष्टी से जितना महत्वपूर्ण है उतना ही इसका सांस्कृतिक महत्व भी है यहां सालभर में विभिन्न त्योंहार,उत्सव,शोभायात्राएं निकाली जाती है। जिनमें से महत्वपूर्ण है गणगौर और तीज माता की सवारी यह सवारी राजसी ठाठबाट के साथ निकाली जाती है। इस उत्सव को देखने के लिए आस-पास के गांवों के लोग भी एकत्रित होते हैं। वहीं देशी-विदेशी सैलानी भी विशेषतौर पर इस उत्सव को देखने के लिए आते हैं। इस उत्सव में हाथी,घोड़े,पालकी,जयपुर के प्रसिद्ध बैंड,ख्यातिनाम कलाकार इस उत्सव में अपनी प्रस्तुतियां देते हैं। जयपुर इन्फेन्ट्री बटालियन व रिसाला के बंदूकधारी सैनिक गणगौर माता को गार्ड आॅफ आॅनकर देने के बाद गणगौर माता के साथ चलते हैं। गणगौर माता की सवारी सिटी पैलेस से निकलने के बाद त्रिपोलिया गेट होते हुए छोटी चौपड़ पहुंती है और वहां से यह सवारी एक बाजार में प्रवेश करती है। जिस कारण इस बाजार को गणगौरी बाजार के नाम से जाना जाता है।

पहले यहां बाजार नहीं था केवल रास्ता ही था जहां से माता की सवारी निकला करती थी लेकिन अब यहां बाजार विकसित हो चुका है। गणगौरी बाजार से माता की सवारी एक प्राचीन दरवाजे से होकर चौगान स्टेडियम पहुंचती है उस दरवाजे को गणगौरी दरवाजे के नाम से जाना जाता है। चौगान स्टेडिम से माता की सवारी पौण्ड्रिक उद्यान और तालकटोरा की पाल पर पहुंचती है। यहां पोण्ड्रिक उद्यान के पास बनी ऐतिहासिक छतरी में माता को घेवर का भोग अर्पित किया जाता है उसके बाद यह शोभायात्रा सम्पन्न होती है और माता वापस सिटी पैलेस लोट जाती है। इस ऐतिहासिक उत्सव के कारण ही इस बाजार को गणगौरी बाजार कहा जाता है। क्योंकि यहां से राजसी ठाठ के साथ गणगौर माता की सवारी निकाली जाती है।