झुंझुनूं/पचलंगी. मरुस्थल के जहाज के नाम से पहचान रखने वाला ऊंट अब दिन प्रतिदिन लुप्त होता जा रहा है । भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि कार्य में पहले ऊंट व बैल ही काम आते थे। लेकिन मशीनरी युग में कृषि कार्य में इनकी मांग नहीं के बराबर है।
पुष्कर मेले से लाते हैं ऊंट
मरुस्थल के जहाज कहे जाने वाले ऊंट की नर व मादा नस्ल पुष्कर पशु मेले से खरीद कर लाते हैं। व्यवसाय से जुड़े कर्ण ङ्क्षसह देवासी , मदनलाल रायका, श्री राम रायका ने बताया कि पीढिय़ों से ऊंट पालन का कार्य करते हैं। ऊंट की खरीददारी पुष्कर व नागौर में लगने वाले पशु मेले से बड़े पैमाने पर की जाती है। पशुधन सहायक पापड़ा बनवारी लाल ने बताया कि ऊंट की नर व मादा नस्ल में मारवाड़ी, बीकानेरी, जोधपुरी व जैसलमेरी सहित अलग अलग नस्ल होती है। पशुपालक अपने हिसाब से अलग-अलग नस्लों की खरीद करते हैं।
मांग कम होने पर व्यवसाय घाटे में –
ऊंट पालन व्यवसाय से जुड़े मदनलाल रायका ने जानकारी देते हुए बताया कि मशीनी युग में ऊंटों की मांग कम हो गई । इनकी मांग कृषि कार्य में कम होने के कारण यह व्यवसाय अब घाटे का बनता जा रहा है। कर्ण ङ्क्षसह देवासी ने जानकारी देते हुए बताया कि पहले ऊंट कृषि कार्य बोझा ढोने व सवारी करने के काम आता था। अब इस मशीनी युग में इसकी मांग ना के बराबर हो गई ।
दूध की मांग अधिक
ऊंट पालन व्यवसाय से जुड़े श्रीराम रायका, कर्ण ङ्क्षसह सहित अन्य ने बताया कि ऊंटनी के दूध में औषधीय गुण होने पर इसकी मांग अधिक है। डेयरी के माध्यम से प्रतिदिन ढाई सौ से 300 लीटर दूध जयपुर भेजते हैं । दूध की प्रति लीटर सौ रुपए कीमत मिलती है। कई लोग सीधा भी खरीदकर ले जाते हैं। यह रसगुल्ले, मावा सहित अन्य मिठाई बनाने के काम भी आता है।
सरकारी सहायता भी बंद –
कर्ण ङ्क्षसह देवासी ने बताया कि ऊंट पालन व्यवसाय में पहले मादा ऊंट (ऊंटनी) वंश उत्पादन (प्रसव) के समय पशु पालन विभाग के माध्यम से अनुदान राशि मिलती थी। लेकिन वह पिछले 2 वर्षों से नहीं मिल रही है।
इनका कहना है-
मरुस्थल का जहाज ऊंट पहले लोग सवारी, कृषि कार्य व अपनी शान शौकत के लिए भी पालते थे। लेकिन अब मशीनी युग में यह कम मिलता है। वहीं उष्ट्र विकास योजना के तहत मादा ऊंट (ऊंटनी) के प्रसव के समय तीन किस्तों में अलग – अलग समय में सरकार द्वारा सहायता राशि दी जाती थी। पिछले 2 वर्षों से यह योजना बंद हो गई। बीमा योजना भी बंद है। उच्च अधिकारियों को पशुपालकों की समस्या से अवगत करवाया गया है।
डॉ. मि_ू मीणा, ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी पशु पालन विभाग उदयपुरवाटी।