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जोधपुर

ऐतिहासिक घूंघरा गेर में नर्तकों ने बांधा समां

आथुणी हथाई पर उमड़ा पीपाड़ का माली समाज

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जोधपुर /पीपाड़ सिटी@पत्रिका. शीतला सप्तमी के अवसर पर जोधपुर जिले के ग्राम्यांचल क्षेत्र की महिलाओं ने अपने परिवार को निरोगी रखने एवं खुशहाली एवं संपन्नता बनाए रखने की कामना के साथ एक दिन पूर्व बने हुए ठंडे भोजन का भोग लगाया। अलसुबह से ही महिलाएं माता के गीत गाती हुई शीतला माता मंदिर पहुंची। पीपाड़ शहर में हर वर्ष की भांति इस बार भी शीतला सप्तमी को मालियों की आथूणी हथाई पर घूघरा गेर का भव्य आयोजन किया गया। पारंपरिक वेशभूषा के साथ पैरों में घुंघरू पहने नर्तकों ने जमकर नृत्य किया। ढोल की थाप पर गूंजते धियो,धियो के स्वर ने समां बांध दिया। आथुणी हथाई पर मुख्य आयोजन में राजस्थानी चोला एवं धोती तथा साफा पहने माली समाज के लोगों ने जमकर नृत्य किया। घूघरा गेर को देखने विभिन्न क्षेत्रों से महिलाओं एवं पुरुषों की भीड़ देर शाम तक कार्यक्रम स्थल तक जमी रही। गेर स्थल के आसपास के घरों की छतों से भी लोगों ने कार्यक्रम को निहारा। सुरक्षा व्यवस्था के लिए कार्यक्रम स्थल पर पुलिसकर्मियों को लगाया गया। देर शाम को क्षेत्र के अगुणी हथाई पर भी कार्यक्रम का आयोजन रखा गया। जहां पर पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचे गेरियों ने नृत्य कला का प्रदर्शन किया। घूघरा गेर आयोजन समिति की ओर से कार्यक्रम स्थल पर पेयजल,पार्किंग एवं कई व्यवस्थाएं की गई। आथूणी हथाई पर आयोजित मुख्य कार्यक्रम में माली समाज के लोगों के साथ आयोजन समिति के कई कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

परम्परा में पर्यावरण संरक्षण का संदेश
माता शीतला की पूजा करने के 1 दिन पहले घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोजन बनाया जाता है, क्योंकि पूजन वाले दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इसलिए महिलाएं शीतला सप्तमी के एक दिन पहले भोजन बना लेती हैं और पूजन वाले दिन घर के सभी सदस्य इसी ठंडे भोजन का सेवन करते हैं। ऐसी लोक मान्यता है कि शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती और अगर हो भी जाए तो माता के आशीर्वाद से जल्दी ही छुटकारा भी मिलता है। ऐसी लोक मान्यता है कि शीतला माता का स्वरूप अत्यंत शीतल है और चर्म संबंधी रोगों को हरने वाला है। इनका वाहन गदर्भ है, तथा इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक हैं।

जोधपुर में होता है दूसरे दिन पूजन
जोधपुर में माता शीतला का पूजन शीतलाष्टमी को किया जाता है। ऐसा इसीलिए कि विक्रम संवत 1826 में सप्तमी के दिन तत्कालीन जोधपुर महाराज विजयसिंह के दो महाराज कुमारों की शीतला सप्तमी के दिन ही मृत्यु हो जाने के कारण शीतला सप्तमी को अकता रखने की परम्परा चली आ रही है। यह परम्परा आज भी कायम हैं।