रामाकान्त सिन्हा
Kondagon News : जिस शिल्पकारी की बदौलत देश-विदेश के लोग उनकी कला के फैंन बन गए अब वही कलाकार अपनी इस कलाकारी को छोड़कर जीवन यापन के लिए चिकन सेंटर का संचालन करने को मजबूर है। हम बात कर रहे है शिल्पनगरी के नाम से पहचाने जाने वाले नगर के बम्बूशिल्पी (चित्रकारी) उपेंद्र नेताम जो तकरीबन ढाई दशक से बम्बू शिल्प पर काम करते हुए अपनी कला की पहचान देश-विदेश तक पहुचाने वाले इस शिल्पी को शासन-प्रशासन से सहयोग न मिलने के चलते वह अपनी इस कला को ही छोड़कर अब घर पर चिकन सेंटर का संचालन करने लगा है। उसने बताया कि, उसकी कला को स्थानीय व राज्य स्तर पर तव्वजो नहीं मिल रहा हैं। जबकि इसी कला की बदौलत वह देश के कई बड़े राज्यों में अपनी कला का प्रदशर्न पहले ही कर चुके है। उन्होंने बताया कि, आवाडीर् शिल्पकार को ही सूरजकूंड मेले में राज्य से शामिल होने भेजा जाता है, लेकिन वे एक ऐसे शिल्पकार थे जिसे आवाडर् मिले बिना ही इस मेले में केवल कलाकारी को देखते हुए शासन से भेजा गया था।
पहली शिल्पकारी बेल्जियम गई
शिल्पकार उपेंद्र ने बातया कि, उनकी पहली शिल्पकला बस्तर भ्रमण में आए बेल्जियम के नागरिक व रीवा कलेक्टर के द्वारा खरीदी गई थीं। जबकि उस वक्त मेरी कलाकारी की शुरूआती दिन थे, मेरी कला को प्रोत्साहन मिलने के बाद मैं इसमें रचबस गया था। इसके बाद एक-के बाद जगहों पर प्रदशर्नी में मुझे जाने का मौका मिला इसी बीच मैंने भी अपने शिल्पकारी को राज्य व राष्ट्रीय आवाडर् के लिए भेजा था। लेकिन वह सलेक्ट नहीं हो पाया और वापसी के दौरान ये मेरी शिल्पकारी जिसे मैने दिनरात एककर बनाई थी वह टूट-फूटकर मुझे वापस की गई। जिससे में काफी व्यथित हो गया और धीरे-धीरे मेरी इस कला दूरी बनती चली गई। और घर परिवार चलाने के लिए रोजी-रोटी तलाश शुरू की और आज मैं घर पर ही चिकन सेंटर चला रहा हूॅ। लेकिन मेरे हुनर को मौका मिले तो मैं अपना 100 फिसदी देने को तैयार हु।
योजनाओं के बाद भी भटक रहे कलाकार
वैसे तो शासन-प्रशासन के द्वारा विभिन्न योजना बनाकर कलाकार को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन क्या ये सारे के सारे प्रयास केवल कागजो तक ही सिमट कर तो नहीं रह गए,जिसके चलते कलाकार अपनी कलाकारी छोड़कर अन्य काम-धंधों की ओर आकषिर्त हो रहे है। यह कोई पहला मामला नहीं है जब एक शिल्पकार ने अपनी कला से तौबा की हो बल्कि ऐसे कई अवाडीर् कलाकार जिनकी पुस्तैनी काम भी है वो भी अब धीरे-धीरे इससे दूर भागते नजर आ रहे है।