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Video Story: – आचरण में पवित्रता का अवसर देता है रमजान

रमजान का पहला अशरा रहमत, दूसरा मगफिरत और तीसरा अशरा है जहन्नुम से निजात

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मंडला. रमजान का पाक महीना चल रहा है। रोजदार एक माह तक रोजा रखकर खुदा की इबादत कर रहे हैं। पाक माह रमजान का पहला अशरा दस दिन रहमत, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का है। इस पाक माह में शहर की सभी मस्जिदों में चहल पहल बढ़ गई है। सुबह शाम विशेष नमाज अदा शुरू हो गई है। शहर में रमजान पर्व की रौनक देखी जा रही है। रमजान का महीना रोजेदारों को अपने आचरण की पवित्रता से आत्मिक शुद्धि का अवसर देता है। इस्लाम में रमजान के महीने को अत्यंत पवित्र माना जाता है। माह-ए-रमजान या रमजानुल मुबारक हमें अपने भीतर के गुणों और अच्छाइयों को परखने व उन्हें निखारने का अवसर देता है। बताया गया कि जब रोजा रखने वाले रोजा रखकर अच्छाइयों की राह पर चल देते हैं, तो अल्लाह रोजेदार से प्रसन्न हो जाते हैं। रोजे के दौरान अपनी इंद्रियों को वश में रखना बहुत जरूरी है। इस दौरान वर्जित और बुरी बातों की तरफ जाना तो दूर, उनके बारे में सोचना भी गुनाह माना जाता है। रोजे के दौरान बुरा कहने, बुरा देखने और बुरा करने की मनाही है, बुरा सोचने, झूठ बोलने, किसी को तकलीफ पहुंचाने, पीठ पीछे बुराई करने की भी मनाही है। रोजेदार को मन, वचन और कर्म से खुद को सात्विक और अनुशासित रखना होता है। आचरण की शुचिता का खयाल रखना होता है। इस दृष्टि से यह आत्मिक शुद्धि का महीना है। बता दें कि रोजे की शुरुआत फजिर की नमाज से होती है, जो सुबह चार-पांच बजे के बीच होती है। रोजदार सहरी के वक्त कुछ खा लेते हैं और पूरे दिन के रोजे के लिए तैयार हो जाते हैं। वे मस्जिद में फर्ज की नमाज अदा करते हैं और रोजाना के कामों में व्यस्त हो जाते हैं, लेकिन उनके अंतस में रोजे की कैफियत बनी रहती है। पांचों वक्त की नमाज, रात में तरावीह की नमाज में कुरआन का चिंतन व श्रवण आदि। इस्लाम में रोजे को फर्ज माना गया है। रोजे बीमारी, लाचारी या दुख, तकलीफ में ही छोड़े जा सकते हैं। इस माह में नफ्ल का सवाब फर्ज के बराबर मिलता है और प्रत्येक फर्ज का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है। अल्लाह तआला रोजेदारों के पिछले सारे गुनाह माफ कर देता है। जो लोग किसी रोजेदार को इफ्तार करवा देते हैं तो इस कारण उस व्यक्ति के तमाम गुनाह माफ हो जाते हैं। अल्लाह तआला फरमाते है कि मोमिन की रोजी बढ़ा दी जाती है। रमजानुल मुबारक एक दूसरे के हमदर्दी का भी महीना है। सब्र करने का महीना है रमजानुल मुबारक रमजान त्याग का महीना है। अल्लाह ने अपने बंदों को बुराइयों को त्याग कर अच्छे मार्ग पर चलने का यह सुनहरा मौका प्रदान किया है।