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भीलवाड़ा में रैन बसेरे में कट रही शंकर की जिंदगानी

दिव्यांगता ने जीने के मायने बदल दिए। अपनों का साथ नहीं मिला तो जिंदगी की राह आसान नहीं रही । यह कहानी मांडलगढ़ के विट्ठलपुरा निवासी शंकरलाल (42) पुत्र जालम कुमावत की, जिसका हालिया ठिकाना इन दिनों प्राइवेट बस स्टैंड िस्थत नगर परिषद का रैन बसरा है।

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भीलवाड़ा। दिव्यांगता ने जीने के मायने बदल दिए। अपनों का साथ नहीं मिला तो जिंदगी की राह आसान नहीं रही । हौसले बुलंद रख कमाना चाहता है, लेकिन सरकारी मदद नहीं मिलने से जीवन नगर परिषद के रैन बसेरे में ठहर गया है। यह कहानी मांडलगढ़ के विट्ठलपुरा निवासी शंकरलाल (42) पुत्र जालम कुमावत की, जिसका हालिया ठिकाना इन दिनों प्राइवेट बस स्टैंड िस्थत नगर परिषद का रैन बसरा है।

शंकर ने पत्रिका को बताया कि वह जन्म से एक पैर व हाथ में दिव्यांगता का दंश भुगत रहा है। माता-पिता थे, जब तक मदद मिल रही थी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद परिवार का सहारा छीन गया। वह पांच साल से यहां रैन बसरे में जिंदगी जीने को मजबूर है। अभी उसका स्थाई ठौर ठिकाना नहीं है। अब दिव्यांग होने से आने जाने व काम करने में कई दिक्कतें आती है। थोड़ा कुछ करने की हिम्मत करता हूं लेकिन साधन नहीं होने से कही भी नहीं जा पाता हूं। आर्थिक तंगी से परेशान हूं। कई बार खाने का संकट हो जाता है।

नहीं मिल सका स्कूटर

वह बताता है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2023 में उसे एक्टिवा (स्कूटर) देने के लिए चयनित किया था। विधायक कोष से बजट राशि जारी कर दी गई। उसने भी सभी दस्तावेज पेश कर दिए। सूची में शामिल 57 जनों को स्कूटर मिल चुका है। उसे अभी तक स्कूटर नहीं मिला है। उसने नगर परिषद व संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन दिए। शंकर का कहना है कि उसे सरकारी मदद मिल जाए तो रोजगार की भी उम्मीद बंध जाए।