22 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

प्रतापगढ़

घोंसला पंसद आने पर वीवर बर्ड बनाती है जोड़ा

When the nest is liked, the weaver bird makes a pair

Google source verification



प्रतापगढ़. मानसून के दौरान इन दिनों वीवर बर्ड(बया पक्षी) घोंसला बनाने और जोड़ा बनाने में व्यस्त होते है। जहां नर पक्षी ही घोंसला बनाता है। जो आधा बनने के बाद मादा को पसंद होने पर उसी से जोड़ा भी बनाती है। इसके लिए पहले घोंसला आधा बनने के बाद मादा इसका निरीक्षण करती है। घोंसला पसंद आने पर ही इसे पूरा करने और जोड़ा बनाने की स्वीकृति देती है।
इन दिनों इनका प्रजनन काल चल रहा है। इसी समय यह चिडिय़ा अपना जोड़ा बनाने और घोंसला बनाने में व्यस्त है। जो कंटीले पेड़ों पर झूलते टहनियों से लटकते हुए घोंसला बना रहे है। जहां वीवर बर्ड काफी संख्या में देखे जा सकते है। जो सुबह से शाम तक घोंसला बनाने और चहचहाट से लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।
पर्यावरणविद् मंगल मेहता के अनुसार सभी नर वीवर बर्ड पहले चरण में आधा-अधूरा घोंसला बनाते है, और मादा वीवर बर्ड एक-एक कर सभी घोंसलों का निरीक्षण करती है। इसमें कई बार फूल-पत्तियां भी रखती है। घोंसला पसंद आने पर ही संबंधित नर के साथ जोड़ा बनाती है। जोड़ा बनने के बाद फिर से नर बया घोंसले को बनाना शुरू कर देता है। मादा को रिझाने के लिए कई बार नर को 2 से 3 घोंसले तक बनाने पड़ जाते हैं। जैसे ही मादा उस पेड़ के पास या उस पेड़ के तरफ आती है। ये सब चिड़े उल्टा लटककर शोर मचाने शुरू हो जाते हैं। यह शोर नहीं बल्कि, प्रेम का आमंत्रण होता है। साथ-साथ नर चिड़े अपने पंखों को लय में फडफ़ड़ाते जो एक प्रकार का नृत्य भी हैं। इनकी यह क्रीड़ा देखने में काफी मजेदार होती है। मादाएं नर की अपेक्षा कम दिखती है।
कीटनाशकों से संख्या में कमी
गत कुछ वर्षों से इन चिडिय़ा की संख्या में कमी देखी गई है। इसका कारण यह है कि फसलों में कीटनाशकों का अधिक उपयोग हो रहा है। ऐसे में हरित क्रांति के नाम पर कीटनाशकों का प्रयोग इस चिडिय़ा के लिए भी संकट खड़ा करता है। अब इनकी संख्या भी कम हुई है। यह पक्षी फसलों के दाने खाता है। इसके साथ की कीट-पतंगों का भी भक्षण करता है। इससे बया पक्षी किसानों का दोस्त भी है। लेकिन फसलों की कीटनाशक के छिडक़ाव का असर हो रहा है।
राजस्थान में तीन प्रजातियां
बया पक्षी की राजस्थान में तीन प्रजातियां पाई जाती है। इसमें से प्रतापगढ़ में कॉमन बया प्रजाति पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम प्लोसियश फिलिङ्क्षपस है। जो जोड़ा बनाने के बाद अक्टूबर माह तक प्रजनन पूरा करते है। इसके बाद सभी अपने बच्चों को लेकर समूह के रूप में उड़ जाते है। जो अलगे वर्ष अन्यत्र पेड़ पर घोंसले बनाते है। एक बार बनाया गया घोंसले को दुबारा काम में नहीं लिया जाता है।
सुरक्षा के लिए कंटीले पेड़ों का चयन
पर्यावरणविद् देवेन्द्र मिस्त्री ने बताया कि बया अपना घोंसला कांटेदार पेड़ों पर ही बनाते है। इनमें बबूल, खेर, खेजड़ी, खजूर आदि की लटकती हुई टहनी पर बनाती है। अधिकतर उस तरफ घोंसला बनाते है, जिधर टहनी के नीचे पानी हो। ताकि शिकारी जन्तुओं से सुरक्षा मिल सके। घोंसला रेशेदार पत्तों से बनाते है। इसमें खजूर, बांस और अन्य रेशे लेकर आते है और घोंसला बनाते है। इनके घोंसले लालटेन की तरह लटकता हुआ होता है। घोंसले में भी दो कक्ष होते है। मानसून के दौरान नर पक्षी का कलर भी इन दिनों बदलकर पीला हो जाता है। इससे नर की खूबसूरती भी बढ़़ जाती है। नर पक्षी ही घोंसला बनाता है। जो आधा बनने के बाद मादा को पसंद होने पर उसी से जोड़ा भी बनाता हैै।

किसानों का दोस्त, संरक्षित श्रेणी का पक्षी
यह पक्षी किसानों का दोस्त होता है। खेतों में कीट-पतंगों को भी खाती है। इससे किसानों को इनका संरक्षण करना चाहिए। वहीं वन्यजीव अधिनियम १९७२ की अनुसूची चार में इसे संरक्षित किया गया है। इससे इस पक्षी को कैद में रखने, शिकार करने पर पाबंदी है। हालांकि गत वर्षों से कीटनाशकों के प्रयोग से अन्य जीवों के साथ इनकी संख्या में कमी हो रही है। ऐसे में किसानों को जैविक खेती की ओर बढऩा होगा।
सुनील कुमार, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़.