सवाईमाधोपुर.रंगोंं का त्योहार होली आने वाला है इसे लेकर लोगों में उत्साह है। हमारे देश में होली खेलने की परम्परा काफी पुरानी है। हालांकि आज के दौर में समय के साथ होली खेलने के तौर. तरीको में काफी हद तक बदलाव आ गया है। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि रणथम्भौर के रियासत कालीन समय होली के तौर तरीके व रंग ढंग क्या थे।इस बार होली के अवसर पर हम आपको रणथम्भौर दुर्ग की रियासत कालीन होली की परम्पराओं व तौर तरीको के बारे में जानकारी देंगे। पेश है एक रिपोर्ट….
फूलोंंं से तैयार होता था रंग
पुराने समय आज की तर्ज पर मशीनों से तैयार होने वाले गुलाल और रंग उपलब्ध नहीं होते थे। ऐसे मेंं राजा के महल में पलाशए केसू व पल्लव अन्य फूलों को पानी में भिगोकर विशेष रंग तैयार किया जाता था। कई बार इन रंगों को सुगंधित करने के लिए गुलाब के फलोंंं व खस से तैयार विशेष प्रकार के इत्र का उपयोग भी किया जाता था।
महिलाओं के लिए होती थी अलग व्यवस्था
रणथम्भौर दुर्ग में रियासतकालीन समय में होली के अवसर पर महिलाओं के होली खेलने के लिए अलग से प्रबंध किए जाते थे। महिलाओं द्वारा पर्दे में रहकर अलग से होली खेली जाती थी। राव हम्मीर के शासन के बाद कभी कभी यवन व जयपुर राजघराने के शासकों के रणथम्भौर आने पर होली खेली जाती थी।
निकलती थी राजपरिवार की सवारी
इतिहासकार गोकुल चंद गोयल ने बताया कि पुराने समय में रणथम्भौर के राजा महाराजा अपने महल में होली खेलते थे। इस दौरान राज परिवार की हाथीए घोड़ेए ऊंट आदि पर सवारी भी निकलती थी और राजा व राजपरिवार के अन्य सदस्य सवारी में शामिल होते थे। यह सवारी पूरे नगर का भ्रमण करती थी। इस दौरान मार्ग में फूलों व रंग की बारिश की जाती थी।
रखे जाते थे बड़े.बड़े पात्र
इतिहासकार प्रभाशंकर उपाध्याय ने बताया कि किदवंती के अनुसार पुराने समय मेें नगर के प्रमुख चौराहों पर रंग से भरे बड़े. बड़े पात्र रखे जाते थे। इनसे राज परिवार के साथ नगर वासी भी होली का आनंद लेते थे। इसके बाद शाही लावजमा वापस महल की ओर लौट आता था।