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हैरत में डाल देगे सांची से भी ज्यादा बौद्ध स्तूप…

देखकर रह जाएंगे दंग, 40 से ज्यादा स्तूपों की है श्रंखला

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हैरत में डाल देगे सांची से भी ज्यादा बौद्ध स्तूप...

40 से ज्यादा स्तूपों की है श्रंखला

मप्र के Sanchi, Vidisha और आसपास का क्षेत्र सदियों से बौद्ध स्मारकों के लिए मशहूर है। ईसा पूर्व के स्तूपों से लेकर बाद के भी स्तूप यहां हैं। India से ज्यादा बौद्ध अनुयायी Shrilanka, Japan आदि देशों में हैं। विश्व धरोहर के रूप में विख्यात सांची के बौद्ध स्तूपों के ही समकालीन अन्य बौद्ध साइट भी सांची और विदिशा के आसपास ही हैं। इनमें सतधारा, सुनारी, अंधेर, मुरेलखुर्द, जाफरखेड़ी और ग्यारसपुर हैं। इनमें से विदिशा से 12 किमी दूर स्थित मुरेल खुर्द की बुद्धिस्ट साइट जिले के ही लोगों के लिए अंजान सी है। विदिशा जिला मुख्यालय से मात्र 12 किमी दूर Murel Khurd (मुरेलखुर्द) सांची से भी ज्यादा संख्या में बौद्ध स्तूपों की श्रंखला हैरत में डाल देती है।

विदिशा (Vidisha )जिला मुख्यालय से मात्र 12 किमी दूर धनोरा हवेली से आगे मुरेल खुर्द की पहाड़ी है। चट्टानी इलाका है। इसी पहाड़ी पर बौद्ध स्तूपों की श्रंखला है। यहां स्तूूपों की संख्या सांची के स्तूपों से भी अधिक दिखती है। गिनती करें तो छोटे-बड़े करीब 40 स्तूप यहां तीन हिस्सों में बंटे हुए हैं। अधिकांश लोगों को यहां इतने सारे स्मारकों की जानकारी ही नहीं, जो पहुंच भी जाते हैं उनमें से ज्यादातर केवल पहाड़ी के पहले हिस्से में मौजूद 10-12 स्तूपों को देखकर वापस आ जाते हैं। जबकि इस पहले हिस्से से और ऊपर की ओर बड़े स्तूपों और बौद्ध विहार की मौजूदगी है।

सांची पहुंच गई मुरेलखुर्द की बुद्ध प्रतिमा
पुरातत्ववेत्ता डॉ नारायण व्यास की मानें तो मुरेल खुर्द की पहाड़ी पर जो बौद्ध विहार है, उस पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी मौजूद थी, जो अब सांची के पुरातत्व संग्रहालय में गैलरी में रखी है। पहाड़ी पर स्थित बौद्ध विहार काफी व्यवस्थित और बड़ा था, जिस पर बुद्ध मंदिर हुआ करता था। मुरेल खुर्द के स्तूप पहले ज्यादा व्यवस्थित थे, उनमें रैलिंग लगी थी, बाद में एएसआइ ने भी यहां काम कराया। ऐसा माना जाना चाहिए कि सांची की तरह मुरेलखुर्द भी बौद्ध स्मारक की दृष्टि से काफी संपन्न था।

IMAGE CREDIT: patrika

सांची के समकालीन है ये साइट
आर्कियोलॉजिस्ट एसबी ओट्टा कहते हैं कि मुरेल खुर्द के स्तूप सांची और सतधारा के स्तूपों के समकालीन हैं। सांची के स्तूपों की खोज 1818 में हुई थी, वहीं मुरेलखुर्द के स्तूप 1853 में सामने आए। यहां के स्तूपों में भी अस्थियां थीं, जिन्हें इंग्लैंड ले जाया गया और फिर वापस नहीं आईं। ये स्तूप भी ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के हैं। इनका निर्माण बाद में दसवीं शताब्दी तक चला है। यहां बहुत व्यवस्थित बौद्ध विहार था। अब भी यहां 40 स्तूप हैं।