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12 दिन बर्फ में दबे रहे, एक साल जिंदगी-मौत से लड़े, आखिरकार थम गई लांस नायक की सांस

- रो पड़ा गांव: सैन्य सम्मान के साथ दी अंतिम विदाई

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विदिशा। लेह-लद्दाख सीमा पर बर्फ में 12 दिन तक दबे रहने वाले करैया के सपूत और भारतीय सेना के लांस नायक राजेंद्र सिंह राजपूत की अंतत: सांस थम गई। वे एक साल से पुणे के सैन्य अस्पताल में भर्ती थे। उनकी मूल पदस्थापना जयपुर में थी। लेह-लद्दाख में ड्यूटी के दौरान बर्फ में दबने से उनकी स्थिति नाजुक हो गई थी।

मंगलवार को राजेंद्र सिंह की पार्थिव देह सेना के दल के साथ शमशाबाद के करैया गांव लाई गई। अपने 'लाल' को विदाई देते हुए लोग गमगीन थे। सेना की टुकड़ी के साथ ग्रामीणों ने राजेंद्र सिंह के पार्थिव शरीर की देशभक्ति के गीतों, भारत माता के जयकारों और आतिशबाजी के साथ अंतिम यात्रा निकाली। मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया। राजेंद्र तीन भाई थे। पिता गजराज सिंह राजपूत किसान हैं।

लेह लद्दाख में 12 दिन दबे रहे बर्फ में
अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए राजेंद्र सिंह देश की सीमाओं की सुरक्षा में करीब एक वर्ष पहले लेह-लद्दाख में तैनात थे। वहां भारी बर्फबारी के कारण बर्फ में दब गए। उन्हें तलाशने में 12 दिन बीत गए। जब उन्हें निकाला गया तो उनके सिर की एक नस दब गई थी। पुणे के आर्मी अस्पताल में एक साल से इलाज जा रहा था, जहां बीती रात ब्रेन हेमरेज हो जाने के कारण वे शहीद हो गए।

तिरपाल लगाकर करना पड़ा अंतिम संस्कार
अंतिम संस्कार शहीद के खेत में होना था, लेकिन भारी बारिश के कारण यह संभव नहीं हुआ। आनन-फानन में गांव के मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार करना पड़ा। यहां तेज बारिश से बचने के लिए तिरपाल लगाई गई, तब अंतिम संस्कार हो सका।