
विलुप्त होते जूट उद्योग का पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है। दरअसल, जूट उद्योग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मां दुर्गा की 45 फीट प्रतिमा बनाई गई है। यहां आरामबाग पूजा में इस प्रतिमा को स्थापित किया गया है। 2004 में जूट कला के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्तकर्ता गौरंग किला ने यह प्रतिमा बनाई है, जो पूरी तरह से जूट से ही बनाई गई है।
नवरात्र में मिट्टी से बनी मूर्तियों को विसर्जित कर दिया जाता है, लेकिन जूट से बनी इस प्रतिमा को पूजा के बाद संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए रखा जाएगा। पूजा के लिए पंडाल में स्थापित इस प्रतिमा को आकर्षक सजाया गया है।
जूट के उत्पादों के उपयोग का संदेश आरामबाग पूजा के कार्यकारी अध्यक्ष अभिजीत के अनुसार इस बार हमारा उद्देश्य जूट के उत्पादों के उपयोग का संदेश देना है इसके लिए विभिन्न तरीकों को आजमाया जा रहा है। इसके साथ ही एक महिला हाथ में दीया लिए हुए की भी प्रतिमा बनाई गई है।
उनका कहना है कि लोग फिर से जूट से बने उत्पादों का उपयोग प्रारंभ कर दे तो यह उद्योग फिर से जीवित हो सकता है। जो लोग इस धंधे से जुड़े हैं उनके बुरे दिन अच्छे दिनों में परिवर्तित हो सकते हैं। पंडाल में सजाए गए चित्र पंडाल को तपन बोस की देखरेख में मधुबनी पेटिंग्स के साथ जूट से बने पल्यूशन फ्री कला से सजाया जाएगा।
पंडाल की दीवारों को मधुबनी पेंटिंग्स और सुपारी की खाल से बने तरह-तरह के चित्रों से सजाया गया। पंडाल के चारों तरफ भगवान रामचंद्र के अकाल बोधन के इतिहास से लेकर मां दुर्गा के चित्र लगाए गए। विलुप्त होती कला को दी तरजीह यहां बाउल, चाउ, गंभीरा, यात्रा, कविगान आदि जैसे बंगाल के विलुप्त हो रहे कला रूपों का पूजा के दौरान प्रदर्शन किया गया ताकि ये कला नई पीढ़ी में भी जीवित रह सकें।
Published on:
04 Oct 2016 11:09 pm
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