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धरती पर यहां मौजूद है नर्क का दरवाजा, जिसमें कई सालों से धधक रही आग

Door of Hell : नर्क के दरवाजे में विशाल क्रेटर या गड्ढे हैं। इन 230 फीट चौड़े गड्ढे में पिछले 50 सालों से लगातार आग जल रही है। ये इतने बड़े हैं कि एक बड़ी आबादी इसमें समा सकती है।

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आमतौर पर धार्मिक गुरुओं और बड़े-बुजुर्गों से कई बार सुना जाता है कि इस धरती पर स्वर्ग और नर्क दोनों द्वार हैं। मनुष्य के कर्मों के मुताबिक उसे स्वर्ग और नर्क में जाना होता है। जो अच्छे कर्म करता है, वो स्वर्ग में जाता है और जो बुरे कर्म करता है उसे नर्क में जगह मिलती है। क्या आप जानते हैं कि ये नर्क का दरवाजा धरती पर कहां मौजूद है? शायद आपको ये जानकर हैरानी होगी, पर ये सच है कि नर्क का दरवाजा यहीं है। धरती पर एक ऐसी जगह है जहां पर विशाल गड्ढे मौजूद हैं। यह सालों से जल रहे हैं जिन्हें ही 'नर्क का दरवाजा' (Gate of Hell) कहा जाता है।


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नर्क का दरवाजा तुर्कमेनिस्तान (Turkmenistan giant holes of fire) में मौजूद है, जहां असल में कई विशाल क्रेटर या गड्ढे हैं। ये गड्ढे करीब 230 फीट चौड़े हैं जिसमें पिछले कई सालों (लगभग 51 साल) से आग धधक रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ये गड्ढे इतने बड़े हैं कि एक बड़ी आबादी इसमें समा सकती है। इनमें से बराबर निकलने वाली जहरीली गैस लोगों को धीरे-धीरे मौत के मुंह में ले जा रही है।

बता दें कि यह विशाल क्रेटर या गड्ढे तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान में मौजूद है, जो अश्गाबत शहर से करीब 160 मील दूरी पर है। इनमें 40 से 50 वर्षों से आग अभी भी जल रही है। इसलिए इसे 'माउथ ऑफ हेल' (Mouth of Hell) या 'गेट ऑफ हेल' भी कहते हैं। तुर्कमेनिस्तान की सरकार ने इन गड्ढों को ढकने के लिए आदेश दिए थे। उन्होंने अपने मंत्रियों से विश्व के बड़े एक्सपर्ट्स खोजने को कहा जो इस क्रेटर को बंद करने में सक्षम हों। लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद आग नहीं बुझी।

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ये गड्ढा हमेशा से यहां मौजूद नहीं था। माना जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के हालात ठीक नहीं थे। उन्हें तेल और प्राकृतिक गैस की काफी आवश्यकता थी। उस वक्त वैज्ञानिकों ने रेगिस्तान में खोदाई शुरू की और तेल खोजने लगे। उन्हें प्राकृतिक गैस तो मिली मगर जहां उन्होंने उसे खोजा वहां जमीन धंस गई और ये विशाल गड्ढे बन गए।

गड्ढों में से मीथेन गैस का रिसाव भी तेजी से हुआ। वायुमंडल को ज्यादा नुकसान ना पहुंचे तो इसलिए उन्होंने गड्ढे में आग लगा दी। उन्हें लगा था कि जैसे ही गैस खत्म होगी, वैसे ही आग भी बुझ जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ और 50 साल बाद भी गैस लगातार जल रही है। हालांकि इस दावे की सच्चाई के कोई पुख्ता सबूत नहीं है।

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