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कल्कि के आने का मिल चुका है संकेत, इस छोटे से घर में लेंगे जन्म

चारों ओर बिल्कुल वैसा ही हो रहा है जैसा कि ग्रन्थों में लिखा गया है। अत: इनको महज कहानी मानकर अविश्वास करना शायद ही उचित होगा।

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Arijita Sen

Aug 26, 2018

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कल्कि के आने का मिल चुका है संकेत, इस छोटे से घर में लेंगे जन्म

नई दिल्ली। जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब-तब भगवान ने धरती पर जन्म लेकर पापों का विनाश किया है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि श्रीमद भगवद गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने ऐसा कहा है। कभी मत्स्य अवतार, कभी वराह अवतार, कभी परशुराम तो कभी प्रभू श्रीराम के रूप में जन्म लेकर भगवान विष्णु ने धरती में से अधर्म का विनाश कर धर्म की स्थापना की है।

अभी हम कलियुग में जी रहे हैं। पुराणों में कलियुग को सभी युगों में सबसे निकृष्ट माना गया है। इस युग में पाप, अनैतिकता, लोभ, अधर्म सभी अपने चरम पर होगा। लोग संबंधों का ख्याल रखें बिना एक-दूसरे को नुकसान पहुचांएगे, नैतिकता नाम की कोई चीज इंसान के मन में नहीं होगा, प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला जारी रहेगा इत्यादि। पुराणों के अनुसार,जब कलियुग अपने चरम पर होगा तब भगवान अपने दसवें अवतार में भगवान कल्कि रूप में धरती पर अवतरित होंगे।

सतयुग से लेकर द्वापर युग तक भगवान विष्णु के अब तक नौ अवतार धरती पर अवतरित हो चुके हैं और अब कलयुग की बारी है। इस युग में उनके दसवें अवतार का इंतजार किया जा रहा है। जो संसार से बुराइयों को खत्म कर एक नए युग की स्थापना करेगा।

पुराणों में ऐसा कहा गया है कि भगवान कल्कि कलियुग के अन्तिम समय में सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जन्म लेंगे। इसी को आधार मानकर हर साल सावन के महीने में शुक्ल पक्ष को कल्कि जयंती के रूप में मनाया जाता है।

पुराणों के अनुसार, भगवान कल्कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के संभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नाम के एक ब्राह्राण परिवार के घर में जन्म लेंगे। वह सफेद घोड़े पर सवार होकर पापियों का नाश करेंगे।

बता दें कि श्रीमद भगवद गीता के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक में कहा गया है कि गुरु, सूर्य और चन्द्रमा जब एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तो भगवान कल्कि का जन्म होगा।इनके अवतार लेते ही फिर से सतयुग का आरम्भ होगा। कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष बताई गई है। वर्तमान में इसके 5,119 साल पूरे हो चुके है।

हम में से बहुतों को यह सारी बातें अंधविश्वास या महज कहानी लगें, लेकिन अगर हम अपने आसपास के वातावरण को देखें तो सदियों पहले पुराणों में लिखी गई बातें सच प्रमाणित होते नजर आएंगी। चारों ओर बिल्कुल वैसा ही हो रहा है जैसा कि ग्रन्थों में लिखा गया है। अत: इनको महज कहानी मानकर अविश्वास करना शायद ही उचित होगा।