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ईद के मौके पर भगवान शिव की अलौकिक शक्तियों वाली ‘छड़ी’ पहुंची इस शहर में, ये है इसका महत्त्व

अमरनाथ यात्रा की औपचारिक शुरुआत के लिए व्यास पूर्णिमा के दिन छड़ी मुबारक भूमि पूजन व ध्वजारोहण हेतु श्रीनगर से पहलगाम के लिए रवाना की जाती है।

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Lord Shiva stick reached Matan city kashmir chadi mubarak yatra

ईद के मौके भगवान शिव की अलौकिक शक्तियों वाली 'छड़ी' पहुंची इस शहर में, ये है इसका महत्त्व

नई दिल्ली। अमरनाथ यात्रा में पवित्र हिमलिंग के दर्शनों के अतिरिक्त सर्वाधिक महत्व की चीज छड़ी मुबारक है। छड़ी मुबारक (भगवान शिव की छड़ी) सोमवार को दक्षिण कश्मीर के मटन शहर पहुंच गई। बता दें कि छड़ी मुबारक की रस्म चांदी की एक छड़ी से जुड़ी है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस छड़ी में भगवान शिव की अलौकिक शक्तियां निहित हैं। जनश्रुति है कि महर्षि कश्यप ने यह छड़ी भगवान शिव को इस आदेश के साथ सौंपी थी कि इसे प्रति वर्ष अमरनाथ लाया जाए। जानकरी के लिए बता दें कि, छड़ी मुबारक के संरक्षक स्वामी दीपेंद्र गिरी के साथ अन्य पुजारी प्रार्थना के लिए पहलगाम पहुंचने से पहले पवित्र छड़ी को लेकर यहां पहुंचे हैं। बता दें कि, अमरनाथ यात्रा की औपचारिक शुरुआत के लिए व्यास पूर्णिमा के दिन छड़ी मुबारक भूमि पूजन व ध्वजारोहण हेतु श्रीनगर से पहलगाम के लिए रवाना की जाती है।

बता दें कि, मटन शहर में शिव मंदिर और एक पवित्र झरना है। पहलगाम शहर जाने से पहले मंदिर और झरने के पास प्रार्थना की जाती है। पवित्र छड़ी के संरक्षक दीपेंद्र गिरी ने कहा, "मट्टन में प्रार्थना करने से मुझे विशेष आनंद मिलता है, क्योंकि स्थानीय मुस्लिम और सिख समुदाय के सदस्य हमेशा हमारा स्वागत करते हैं।" इसके बाद रक्षा बंधन से एक पखवाड़ा पूर्व सोमवती अमावस्या के दिन इसे एक अन्य पूजा के लिए श्रीनगर स्थित शंकराचार्य मंदिर ले जाया जाता है। ऐसा माना किया जाता है कि इस छड़ी में भगवान शिव की अलौकिक शक्तियां निहित हैं। गिरी जी का कहना है कि, जिस तरह सिख समुदाय के सदस्य हमेशा हमारा स्वागत करते हैं, "वह इस तरह के उदाहरण साबित करते हैं कि बंधुत्व, सहिष्णुता, सांप्रदायिक सद्भाव इतना गहरा और ऐतिहासिक है कि कोई भी इस महान परंपरा को समाप्त नहीं कर सकता।" एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार छड़ी मुबारक पहलगाम, चंदनवारी, शेषनाग और पंचतारिणी में अपनी यात्रा पूरी करने के बाद 26 अगस्त को पवित्र गुफा पहुंचेगी। इसके बाद वहां छड़ी मुबारक की पूजा-अर्चना के साथ ही अमरनाथ यात्रा संपन्न हो जाती है। वापसी में इसे पहलगाम लाकर लिद्दर नदी के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।