दयाराम साहू पेशे से वकील ( advocate ) हैं और जब ये कांच खाते हैं तो बड़ी ही सहजता के साथ चबा-चबाकर इसका मज़ा लेकर खाते हैं। दयाराम साहू को कांच खाने की आदत बचपन से ही है। मामले में ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि दयाराम साहू शादीशुदा हैं और उनकी पत्नी उन्हे ऐसा करने से रोकती नहीं हैं। बल्कि वो खुद दयाराम के खाने के लिए कांच का जुगाड़ करती हैं। दयाराम की पत्नी का कहना है कि जब वह शादी के बाद ससुराल आई तो उन्होने दयाराम को चुपचाप बैठे कांच खाते हुए देखा था। उस समय वह इसे देखकर दंग रह गई थीं। कई बार उन्होने अपने पति को रोकने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानें और अब वो अपने पति के खाने के लिए खुद कांच का इंतजाम करती हैं।
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दयाराम का कहना था कि पहले वो एक बार में एक किलो कांच चबा जाते थे लेकिन अब उनके दांत कमज़ोर हो चुके जिसके चलते अब वे ऐसा करना बंद कर देंगे। साथ ही उनका कहना है कि बचपन से ही उन्हे कुछ अलग करने की चाहत थी जिसके बाद उन्होंने कांच खाने को अपना शौक बना लिया। दयाराम कहते हैं कि 14-15 वर्ष की उम्र से उन्हे कांच खाने की आदत लग गई थी।