2018 में आया था कानून
एक इंटरव्यू के दौरान निशा ने बताया कि वकालत से आगे अब उनका लक्ष्य पाकिस्तान (Pakistan) की पहली ट्रांसजेंडर (Transgender) जज बनने का है। निशा ने कहा कि वे इसके लिए हर स्तर तक जाने को तैयार हैं। 2018 से पहले तक पाकिस्तान में ट्रांसजेंडरों को सामान्य अधिकार नहीं थे उन्हें समाज में हिकारत की नज़र से देखा जाता था लेकिन साल 2018 में पाकिस्तान के कानून में बदलाव हुआ इसके बाद ट्रांसजेंडरों से भेदभाव, करने या हिंसा के लिए सजा देने का प्रावधान हुआ है। पर हकीकत अभी भी काफी उलट है, उन्हें अज भी आम नागरिकों जैसे अधिकार नहीं मिले हैं।
छोड़ना पड़ा था घर
पाकिस्तान ऐसा देश है जहां ट्रांसजेंडर को समाज में निचले स्तर का माना जाता है। वे सड़कों पर भीख मांगकर या शादियों में नाचकर अपना गुजारा करते हैं। पर ऐसे माहौल में भी निशा राव पूरे समाज के लिए एक उदाहरण बन कर सामने आई हैं। निशा लाहौर के एक शिक्षित मध्यम-वर्गीय परिवार में जन्मीं पर जब वे 18 वर्ष की हुईं तब उन्हें एहसास हुआ कि वे समाज में अलग पैदा हुई हैं। उस समय उन्होंने अपना घर छोड़ दिया।
रूढ़ीवादी सोच को निशा ने दिखाई नई राह
निशा को समाज के वरिष्ठ लोगों ने जीवन यापन के लिए भीख मांगने की सलाह दी। घर से निकलने के बाद निशा राव को ना चाहते हुए भी शुरुआत में ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांग कर गुजारा करना पड़ा। भीख मांग कर निशा ने किसी तरह लॉ की पढ़ाई पूरी की।
50 केस लड़ चुकी हैं
किन्नर से एडवोकेट निशा बनने में उन्हें सालों कड़ी मेहनत करनी पड़ी। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और अब वे सड़कों पर भीख मागने के बजाय साल की शुरुआत से कोर्ट में बतौर वकील उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए बाकायदे लाइसेंस मिल चुका है। एडवोकेट निशा ने अबतक 50 मामले लड़ चुकी हैं। इसके अलावा निशा एक एनजीओ जिसका नाम ट्रांस-राइट्स है उससे भी जुड़ कर ट्रांसजेंडर्स की भलाई के लिए काम कर रही हैं।