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मौत के दरवाज़े पर खड़ा यूरोप! अमरीका, चीन, रूस से बिगड़ रहे संबंध, फ्रांस ने दी वॉर्निंग

फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने नीतियां बदलने की चेतावनी की जारी की है। मैक्रों ने कहा है कि बदलते वैश्विक हालात में अगर यूरोप ने अमरीका और चीन के उभरते संरक्षणवाद से निपटने के लिए कदम नहीं उठाए तो यूरोप की मौत हो सकती है।

नई दिल्लीApr 29, 2024 / 10:03 am

Jyoti Sharma

USA, Russia, China

France issued Warning to change Europe’s policies

यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बाद से रूस से टकराव, चीन से बिगड़ते संबंध और अमरीका में बढ़ती संरक्षणवादी नीतियों (America First) के चलते यूरोप के सामने आज का अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। यूरोप (Europe) के शीर्ष नेता और रणनीतिकार अब खुलकर यह कहने लगे हैं कि अपना मौजूदा अस्तित्व बनाए रखने के लिए यूरोप को अपनी प्राथमिकताओं में तेजी से बदलाव लाना होगा। हाल में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) ने अपने बेहद चर्चित भाषण में कहा है कि बदलते वैश्विक हालात में अगर यूरोप ने अमरीका और चीन के उभरते संरक्षणवाद से निपटने के लिए कदम नहीं उठाए तो यूरोप की मौत हो सकती है। 

फ्रांस के राष्ट्रपति ने दे दी चेतावनी 

पेरिस (Paris) के सोरबोन विश्वविद्यालय में बोलते हुए मैक्रों ने कहा कि यूरोप में नवाचार पर पर्याप्त खर्च नहीं किया जा रहा। इस कारण हम न तो हम अपने उद्योगों को नहीं बचा सकेंगे और न ही सैन्य और रक्षा खर्च को बनाए रख सकेंगे। मैक्रों ने कहा कि बदलते वर्ल्ड ऑर्डर के अनुसार यूरोप अपने को बदलने के लिए तैयार नहीं है। मैक्रों ने कहा कि रूस (Russia) से शत्रुता, अमरीका की यूरोप में कम होती रुचि और चीन (China) से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते जल्द ही वैश्विक पटल पर यूरोपीय संघ (EU) हाशिये पर जाने का जोखिम बना हुआ है।

रूस, चीन और अमरीका पर निर्भरता के दिन खत्म

मैक्रों ने अपने भाषण में चेतावनी देते हुए कहा, वह युग गया जब यूरोपीय संघ अपनी ऊर्जा जरूरतों और उर्वरक आदि सामग्री को रूस से खरीदता था, अपना उत्पादन चीन को आउटसोर्स करता था और अपनी सुरक्षा के लिए अमरीका पर निर्भर था। मैक्रों ने यहां तक कहा कि अमरीका की पहली प्राथमिकता आज यूरोप नहीं चीन बन गया है। इसलिए यूरोप को अपनी अर्थव्यवस्था और रक्षा के लिए रणनीतिक रूप से अपनी नीतियों में भारी बदलाव लाना होगा।
ऑस्ट्रियन इंस्टीट्यूट फॉर यूरोपियन एंड सिक्योरिटी पॉलिसी की निदेशक डॉ. वेलिना चाकारोवा ने भी इससे तीखी चेतावनी यूरोप के लिए जारी की है। चाकारोवा ने कहा, यूरोप ने पिछले 30 वर्षों में जो विशाल कल्याणकारी सिस्टम खड़ा किया है, वह अपनी सुरक्षा के लिए अमरीका, मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन, कमोडिटीज आदि के लिए रूस पर निर्भर था…लेकिन अब जब धीरे-धीरे यह सब खत्म हो रहा, तो क्या होगा, यह सोचने का वक्त आ गया है।

चीन से 20 फीसदी आयात

चीन पर निर्भरता का जोखिम कम करने की तमाम चर्चाओं के बावजूद चीनी कंपनियां आज भी यूरोप की सबसे बड़ी आपूर्तिकर्ता बनी हुई हैं। 2023 के पहले छह महीनों के दौरान यूरोप में लगभग 20 प्रतिशत आयात चीन से ही हुआ। इसके विपरीत, अमरीका ने नीतियां बदलते हुए 20 साल में पहली बार चीन की तुलना में मेक्सिको और कनाडा के साथ अधिक व्यापार किया। विशेष रूप से एनर्जी के मामले में यह निर्भरता काफी ज्यादा है। यूरोप अपनी लिथियम आयन बैटरी का 80 फीसदी चीन से आयात कर रहा है।
सिर्फ मैन्यूफैक्चरिंग ही नहीं, चीनी कंपनियों ने यूरोप में अपना निवेश भी काफी बढ़ाया है। कम से कम 10 यूरोपीय देशों में चीन ने बंदरगाहों में निवेश किया है, पुर्तगाल, इटली और ग्रीस में चीन ने पॉवर ग्रिड तथा समुद्री केबल में बढ़ी मात्रा में निवेश किया है।

यूरोप में वजूद को फिर से खड़ा करने की चिंता

यूरोपीय देशों में देखी जा रही चिंता निर्भरता की चिंता कहीं अधिक व्यापक है। यूरोप की कल्याणकारी योजनाएं करदाताओं के उच्च स्तर के कराधान से अर्जित धन पर आधारित हैं। यहां आयकर और सामाजिक सुरक्षा टैक 65% से 80% तक है। इन करदाताओं के पैसे का उपयोग चीन से कम कीमत पर निर्मित सामान खरीदने के लिए किया जाता है। यूरोप 5 दशकों से अधिक समय से रूस से कम दरों पर बिजली और ऊर्जा पर निर्भर बना हुआ था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमरीका और नाटो के माध्यम से सुरक्षा पर खर्च कम किया गया। अब जबकि ग्लोबल वर्ल्ड ऑर्डर में यह सब बदल रहा है, यूरोप के सामने वजूद को फिर से खड़ा करने की चिंता देखी जा सकती है।

अमरीका पर यूरोप की सैन्य निर्भरता

यूरोप का कुल डिफेंस बजट 256 अरब डॉलर है। इसकी तुलना में अकेले अमरीका का कुल रक्षा खर्च 849 अरब डॉलर है। अमरीका के लगभग 1 लाख सैनिक भी यूरोप में तैनात है। इतना ही नहीं, नाटो के रक्षा बजट का लगभग दो-तिहाई खर्च भी अमरीका ही उठाता है।

अमरीका से महंगा तेल-गैस खरीदने को मजबूर यूरोप

यूक्रेन युद्ध से पूर्व यूरोप का 90 फीसदी कच्चा तेल और 45 फीसदी गैस रूस से आ रही थी। यूरोप की खपत का कुल 50 फीसदी कोयला भी रूस से आ रहा था। रूस से आपूर्ति लगभग बंद हो जाने के बाद अब यूरोप को अमरीका, अजरबैजान और दूसरे देशों से महंगा ईंधन खरीदना पड़ रहा है।

यूरोप के भविष्य पर सवाल

ऑस्ट्रियन इंस्टीट्यूट फॉर यूरोपियन एंड सिक्योरिटी पॉलिसी की निदेशक डॉ. वेलिना चाकारोवा ने भी यूरोप के लिए तीखी चेतावनी जारी की है। चाकारोवा ने कहा, यूरोप ने पिछले 30 वर्षों में जो विशाल कल्याणकारी सिस्टम खड़ा किया है, वह अपनी सुरक्षा के लिए अमरीका, मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन, कमोडिटीज आदि के लिए रूस पर निर्भर था…लेकिन अब जब धीरे-धीरे यह सब खत्म हो रहा, तो क्या होगा, यह सोचने का वक्त आ गया है।

रूस, चीन और अमरीका पर निर्भरता के दिन खत्म

मैक्रों ने अपने भाषण में चेतावनी देते हुए कहा, वह युग गया जब यूरोपीय संघ अपनी ऊर्जा जरूरतों और उर्वरक आदि सामग्री को रूस से खरीदता था, अपना उत्पादन चीन को आउटसोर्स करता था और अपनी सुरक्षा के लिए अमरीका पर निर्भर था। मैक्रों ने यहां तक कहा कि अमरीका की पहली प्राथमिकता आज यूरोप नहीं चीन बन गया है। इसलिए यूरोप को अपनी अर्थव्यवस्था और रक्षा के लिए रणनीतिक रूप से अपनी नीतियों में भारी बदलाव लाना होगा।

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