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दुनिया के तीन सबसे अहम लोकतांत्रिक देशों के नेताओं ने क्यों नहीं दी Xi Jinping को तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की बधाई

दुनिया के सबसे शक्तिशाली और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने को आतुर देश चीन क्या अब वैश्विक समुदाय में बुनियादी शिष्टाचार के लिए भी तरस गया है। ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि ऐसे समय में जबकि ऋषि सुनक के ब्रिटेन के पीएम बनने पर दुनिया भर के नेताओं से बधाई का सिलसिला जारी है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तीसरी बार महासचिव और डी-फैक्टो राष्ट्रपति चुने जाने पर शी जिनपिंग को बधाई देने वाले नेताओं और देशों का टोटा है। सबसे अहम लोकतांत्रिक देशों में से किसी ने चीनी नेता शी जिनपिंग को बधाई नहीं दी है।

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ऐतिहासिक रूप से तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं शी जिनपिंग
माना जा रहा है कि उनका ये कार्यकाल होगा ऐतिहासिक
पार्टी कांग्रेस में पहले से भी शक्तिशाली होकर उभरे हैं शी जिनपिंग
अब चीन में उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने जिनपिंग को ऐतिहासिक रूप से तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के लिए बधाई नहीं दी है। वह भी तब, जब हाल ही में उन्हें रिकॉर्ड तीसरी बार अगले पांच साल के कार्यकाल के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में फिर से चुन लिया गया। विश्लेषकों का कहना है कि वो पहले से अधिक शक्तिशाली बन कर उभरे हैं और वो एक लंबे अरसे तक के लिए सत्ता में बने रह सकते हैं । कुछ विशेषज्ञों का तो मानना है कि उनका क़द अब शायद चीन के महान नेता देंग शियाओपिंग से बड़ा हो चुका है। चीन के इतिहास में माओ के बाद अब उन्हें सबसे अधिक मजबूत नेता माना जा रहा है। इसके बाद भी पाकिस्तान जैसे कुछ देशों को छोड़ दें तो चीन के राष्ट्रपति को बड़े और अहम देशों ने बधाई नहीं दी है।

भारत के पीएम मोदी ने नहीं दी बधाई

भारत की बात करें तो, जिनपिंग जब दूसरी बार राष्ट्रपति बने थे तब पीएम मोदी ने बधाई दी थी। लेकिन मई 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई, तब से ही रिश्तों में तनाव साफ है। ये तनाव किसी से छिपा भी नहीं है। कुछ ही दिन पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले महीने उज़्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरक़ंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक में एक ही छत के नीचे अन्य नेताओं के साथ एक ग्रुप फोटो खिंचवाई थी। वे एक दूसरे से चंद फ़ीट के फ़ासले पर खड़े थे लेकिन उनके बीच दूरी लंबी थी। इतने क़रीब आने के बावजूद उन्होंने न तो हाथ मिलाया और न ही एक-दूसरे की उपस्थिति का ऐसा नोटिस लिया जो सार्वजनिक तौर पर ज़ाहिर होता।

ग्लोबल स्तर पर तनाव के मुद्दों से जूझ रहा है चीन

भारत के साथ तनाव स्पष्ट है और इसके जाने-माने सार्वजनिक कारण भी हैं। लेकिन अमरीका और ब्रिटेन के नेतृत्व द्वारा शी जिनपिंग को बधाई नहीं दिया जाना बता रहा है कहीं कुछ वैश्विवक मुद्दे भी हैं, जिनसे चीन जूझ रहा है। सवाल है कि इस सबको चीन के सियासी गलियारों में किस तरह से देखा जा रहा है...विशेषकर पड़ोसी देश भारत के पीएम मोदी द्वारा बधाई नहीं देने को चीन किस तरह से देख रहा है?

चीन के राष्ट्रपति ने भी बाइडेन को 20 दिन बाद दी थी बधाई

वैसे ये पहली बार नहीं है। याद रहे कि शी जिनपिंग को भी 2020 में राष्ट्रपति बाइडन को बधाई देने में दो हफ़्ते से ज्यादा का समय लगा था। वैसे राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा है कि शी जिनपिंग के पार्टी महासचिव के बजाए राष्ट्रपति घोषित होने पर दुनिया भर के नेता उनको बधाई देंगे। दरअसल जानकारों का कहना है कि अभी शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुने गए हैं। अगले साल जब वो औपचारिक रूप से तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बनेंगे और इसकी घोषणा चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस से की जाएगी, तब उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी समेत दुनिया भर के नेता राष्ट्रपति शी को बधाई ज़रूर देंगे।

ब्रिटेन के रुख पर भी सभी की नजर

देखने वाली बात ये होगी कि ब्रिटेन के नव नियुक्त पीएम ऋषि सुनक का चीन और उसके नेता शी जिनपिंग के प्रति किस तरह का व्यवहार रहता है। वैसे नेता पद की प्रतिस्पर्धा के दौरान सुनक चीन के प्रति काफी आक्रामक रवैया अपनाते देखे जा चुके हैं।

चीन को लेकर अब आशाएं कम, आशंकाएं ज्यादा

वैसे एक अहम सवाल यह भी है कि शी जिनपिंग के बढ़ते हुए क़द और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चीन के तीसरी बार महासचिव चुने जाने का भारत समेत दुनिया की सेहत पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा? इसके नतीजे क्या निकल सकते हैं? दरअसल इसको लेकर पूरी दुनिया में आशाओं से ज्यादा आशंकाएं हैं। दुनिया भर की लोकतांत्रिक ताकतों के साथ चीन का टकराव साफ बढ़ता हुआ देखा जा सकता है। ऐसे में जबकि शी जिनपिंग चीन के आधुनिक इतिहास के सबसे मज़बूत और तानाशाही नेता बन जाएंगे और सत्ता पर उनका पूर्ण नियंत्रण हो जाएगा, तो आशंका यही है कि तमाम पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद सहित अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक सख़्त रुख़ दिखाएंगे। इसका कारण भी है।

चीन अब नहीं रहा एक सौम्य शक्ति
दरअसल चीन को अब दुनिया भर में एक सौम्य शक्ति के बजाए एक आक्रांता और आक्रामक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। दूसरा पक्ष ये भी है कि चीन के साथ और उसके बारे में दुनिया का संवाद पारदर्शी नहीं है। इसलिए कोई भी देश चीन के साथ संवाद में आगे बढ़ते हुए तमाम सावधानी बरतता है। संभव है कि फिलहाल दुनिया भर के अहम देश इस समय यही नीति अपना रहे हों।

भारत बनेगा एससीओ का अध्यक्ष

भारत की बात करें तो, अगले एक साल तक संघाई कॉरपोरेशन आर्गेनाइजेशन की अध्यक्षता भारत के पास है। अगले साल सितंबर में भारत को शिखर सम्मेलन कराना है और हर बार की तरह चीन के राष्ट्रपति भी इसमें नियमित रूप से भाग लेंगे। इसलिए संवाद के ये मौके किस तरह से प्रतिफलित होते हैं, ये देखने की बात होगी। लेकिन अगरसम्मेलन से पहले दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार नहीं होते हैं तो सम्मेलन की कामयाबी पर भी प्रश्न चिन्ह लग सकते हैं ।
ऐसे में उम्मीद तो यही है कि पड़ोसी देश चीन के इतने पास फिर भी इतने दूर वाली हालात में अगले साल बदलाव आए और एशिया के दो विशाल पड़ोसी देशों के बीच दूरी कम हो ।