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Mission Chandrayaan-4 को लेकर आया बड़ा अपडेट, दो उपग्रह एक ही रॉकेट के साथ होंगे लॉन्च !

Mission Chandrayaan-4: चंद्रयान 3 की सफलता के बाद भारत एक बार फिर वैश्विक मंच पर परचम लहराएगा। इसरो ने कमर कस ली है, पढ़िए चंद्रयान -4 से जुड़ी यह अहम जानकारी:

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Chandrayaan-4

Chandrayaan-4

Mission Chandrayaan-4: चंद्रयान-4 के लिए डॉकिंग तकनीक परीक्षण होगा और 28,800 किमी प्रति घंटे की गति से यात्रा करते हुए दो अंतरिक्ष यान (ISRO Chandrayaan-4) पृथ्वी की कक्षा में जुड़ेंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अगले दशक के कई महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए स्वचालित डॉकिंग तकनीक (Space Docking) के परीक्षण की तैयारी कर रहा है। डॉकिंग तकनीक (docking technology ) से पृथ्वी की कक्षा में दो अंतरिक्ष यानों का संयोजन किया जाता है। अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण, वहां मानव या कार्गो मिशन भेजने से लेकर भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रमों के लिए यह तकनीक आवश्यक है। चंद्रमा से नमूने वापस लाने वाले चंद्रयान-4 मिशन (Chandrayaa-4) के लिए भी यह तकनीक जरूरी है।

एक उपग्रह चेजर होगा और दूसरा टारगेट

यह तकनीक हासिल करने के लिए इसरो दिसंबर में स्पैडएक्स मिशन लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है। मिशन के तहत दो उपग्रह एक ही रॉकेट से साथ लॉन्च किए जाएंगे। इनमें से एक उपग्रह चेजर होगा और दूसरा टारगेट। पृथ्वी की कक्षा में स्थापित होने के बाद दोनों अंतरिक्ष यान ((spacecraft) एक-दूसरे से जुड़ेंगे। फिर उन्हें अलग किया जाएगा और कुछ अन्य प्रयोग होंगे। पृथ्वी की कक्षा में दो अंतरिक्ष यानों का जुडऩा और अलग होना ही डॉकिंग तकनीक है।

इसरो को सौंपे अंतरिक्ष यान

दोनों अंतरिक्ष यान लगभग 8 किलोमीटर प्रति सेकेंड (28,800 किमी प्रति घंटे) की रफ्तार से चक्कर काटते हुए एक-दूसरे की तरफ बढ़ेंगे। दोनों अंतरिक्ष यानों का इंटीग्रेशन हैदराबाद की एक निजी एयरोस्पेस एवं रक्षा कंपनी अनंत टेक्नोलॉजीज ने किया है। कंपनी ने दोनों अंतरिक्ष यान इसरो को सौंप दिए हैं। इनका भार लगभग 400 किलोग्राम है। इन्हें इसरो पीएसएलवी से दिसंबर में लॉन्च करने की योजना बना रहा है।

अंतरिक्ष मिशनों के लिए जरूरी

इसरो ने 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पहली इकाई और 2035 तक परिचालन योग्य अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण कई इकाइयों (अंतरिक्ष यानों) को जोडक़र किया जाएगा, जो डॉकिंग से ही होगा। चंद्रयान-4 मिशन में इस तकनीक का कई बार प्रयोग होगा।

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