
यूएई के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जाएद और इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू।
इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात ने पिछले गुरुवार को संबंध सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए। वर्षों बाद इजराइल और अरब बहुमत वाले किसी देश के बीच ये पहला कदम है। इसमें शामिल हर देश के पास दशकों से चली आ रही शत्रुता खत्म करने का अवसर था। हालांकि यूएई को इस समझौते के बाद कई अरब देशों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी, जो वर्षों से इजराइल के साथ दुश्मनी पाले बैठे हैं। समझौते के सबसे बड़े आलोचक इजराइली कब्जे में रहने वाले फिलिस्तीनी थे, जिन्होंने समझौते को अपने हितों और अधिकारों के लिए विश्वासघात करार देते हुए निंदा की है। दशकों तक कई अरब और मुस्लिम बहुल देशों के बीच आम सहमति थी कि वे तब तक इजराइल से शत्रुता खत्म नहीं करेंगे, जब तक कि फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने के लिए सहमति नहीं बन जाती। उधर यूएई का तर्क है कि उसने इजराइल को वेस्ट बैंक (फिलिस्तीन का भाग) में और अधिक क्षेत्र पर कब्जा करने से रोकने में सफलता पाई है। इजराइल के लिए यह सौदा क्षेत्रीय अलगाव को समाप्त करने और अपने अंतरराष्ट्रीय कद को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसे में क्षेत्रीय गठजोड़ कहां टिक पाएगा, जब दूसरे देशों के साथ तनाव है।
मिस्र और जॉर्डन
1948 में आजाद देश की घोषणा के बाद शुरुआती दशकों में इजराइल और पड़ोसी अरब बहुमत वाले देशों ने कई युद्ध लड़े। फिर 1979 में मिस्र, इजराइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश बना। शर्तों के मुताबिक इजराइल सिनाई प्रायद्वीप को वापस करने के लिए सहमत हो गया, जिस पर 1973 में कब्जा कर लिया था।
समझौते पर दस्तखत करने के बाद अरब लीग ने मिस्र की सदस्यता निलंबित कर दी। जॉर्डन, इजराइल को मान्यता देने और 1994 में शांति संधि पर हस्ताक्षर करने वाला दूसरा देश था। 1948 से आधी फिलिस्तीनी वंश की आबादी वाले जॉर्डन ने अक्सर राजनयिक व्यवहार में फिलिस्तीन का प्रतिनिधित्व किया था। जॉर्डन के लिए यह सौदा इजराइल और अमरीका के व्यापार प्रोत्साहन पर केंद्रित था। इस संधि के बाद जॉर्डन-इजराइल और फिलिस्तीन के संबंधों में नया मोड़ आ गया। इसी दौरान इजराइल ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के साथ गुप्त वार्ता कर ली, जो फिलिस्तीनियों का आधिकारिक प्रतिनिधि निकाय बन गया था। लेकिन संधि के बावजूद मिस्र और जॉर्डन के साथ इजराइल के संबंधों में गिरावट आई है। इन देशों में करीबी सुरक्षा सहयोग है और इजराइल के लोग अक्सर मिस्र के सिनाई में छुट्टिया मनाते हैं। लोगों की भावनाएं फिलिस्तीनी अधिकारों के प्रति हैं तो इजराइल के खिलाफ।
मोरक्को और ट्यूनीशिया
दोनों ही देशों का इजराइल के साथ कोई औपचारिक शांति समझौता नहीं है, लेकिन संबंध अपेक्षाकृत स्थिर हैं। इजराइली एक पासपोर्ट पर मिस्र और जॉर्डन के अलावा मोरक्को और ट्यूनीशिया की यात्रा कर सकते हैं। 1948 से पहले मोरक्को और ट्यूनीशिया सहित कई मध्य-पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी देशों में यहूदी समुदाय मजबूत थे, लेकिन इजराइल की स्थापना और इजराइल में बड़े पैमाने पर प्रवास के बाद हालात बदल गए। बहरहाल मोरक्को और ट्यूनीशियाई मूल के इजराइलियों ने इन देशों में सांस्कृतिक संबंध बनाए रखे और दोनों ही देशों में आना-जाना भी रहा।
फारस की खाड़ी के देश
फारस की खाड़ी के देश बहरीन ने इजराइल के साथ संबंधों को औपचारिक बनाने के लिए खुलेपन का संकेत दिया है और यूएई के नेतृत्व की प्रशंसा भी। इस मामले में अब तक चुप रहे सुन्नी देशों के प्रमुख खिलाड़ी सऊदी अरब ने शिया बहुल ईरान के खिलाफ गठबंधन तैयार किया था। 2002 मेें फिर सऊदी अरब को शांति पहले के लिए आगे कर दिया गया। जिसने इजराइल को 1967 में कब्जाई फिलीस्तीनी जमीन लौटाने का आह्वान किया है। अब, जबकि सऊदी अरब, इजराइल के साथ निजी तौर पर संबंधों को मजबूत कर रहा है, विश्लेषकों का मत है कि सार्वजनिक ऐलान अभी भी राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है। सऊदी इस क्षेत्र में इस्लाम के दो सबसे पवित्र शहरों के संरक्षक के रूप में अहम धार्मिक भूमिका निभाता है। दोनों ही रूढि़वादी देश संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में अभिव्यक्ति की आजादी अत्यधिक प्रतिबंधित है।
लेबनान, सीरिया, इराक और कुर्द
लेबनान, सीरिया और इराक सभी के इजराइल के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं है। लेबनान और इजराइल ने कई युद्ध लड़े हैं। वर्ष 2000 में इजराइली सैनिकों की वापसी तक करीब डेढ़ दशक दक्षिणी लेबनान पर इजराइल का कब्जा रहा। दक्षिणी लेबनान स्थित ईरान समर्थित विद्रोही गुट हिजबुल्ला और इजराइल के बीच वर्षों संघर्ष चलता रहा। हालंाकि हिजबुल्ला लेबनान में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है। इसी तरह सीरिया और इजराइल के बीच भी कई युद्ध हुए। 1967 में इजराइल ने गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया। हालांकि अभी भी कुछ हिस्सों पर सीरिया अवैध रूप से काबिज है। उधर इराक के साथ इजराइल के संबंध तनावपूर्ण हैं। उत्तरी इराक स्थित कुर्दों के साथ इजराइल ने गुपचुप गठबंधन खड़ा किया। हालंाकि दोनों के बीच कोई औपचारिक संबंध नहीं हैं, लेकिन व्यापार और खुफिया साझेदारी बनी हुई है।
ईरान और तुर्की
1979 की क्रांति से पहले ईरान और इजराइल की सरकारें काफी करीब थीं। ईरानी शाह के तख्तापलट और मौजूदा लोकतांत्रिक सरकार के उदय के बाद सब बदल गया। ईरान में ज्यादातर आबादी शिया मुसलमानों की है। ईरान में अभी भी एक विशाल यहूदी समुदाय है, हालांकि ज्यादातर अमरीका और इजराइल चले गए। दूसरे अरब राज्यों के साथ ईरान के गठबंधन के बाद इजराइल उसे अपने लिए खतरा समझने लगा। उधर तुर्की और इजराइल के बीच घनिष्ठ सैन्य संबंध हैं। हालंाकि हाल के वर्षों में रिश्तों में खटास आ गई है, क्योंकि तुर्की एक प्रमुख क्षेत्रीय भूमिका की तलाश में है। तुर्की ने यूएई के साथ समझौते की भी निंदा की है।
Published on:
23 Aug 2020 11:02 pm
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