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Goddess Ganga: पृथ्वी पर आगमन से पहले कहां था गंगा जी का निवास, गंगा दशहरा पर पूजा के लिए जानें विधि, मंत्र और श्री गंगा अष्टक

Ganga Dussehra Date : हिंदू धर्म में मान्यता है कि धरती पर पाप से पीड़ित लोगों के उद्धार के लिए ही गंगा दशहरा पर गंगाजी पृथ्वी पर आईं थीं। लेकिन क्या आप जानते हैं पृथ्वी से पहले गंगाजी का निवास कहां था और गंगा दशहरा पर गंगा पूजा विधि, गंगा मंत्र और श्रीगंगा अष्टक क्या है (Ganga Dussehra Puja Vidhi) ...

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Goddess Ganga Puja Mantra Ganga Dussehra 2024

गंगा दशहरा पर गंगा जी की पूजा का मंत्र श्री गंगा अष्टक आदि

Ganga Dussehra 2024 Date: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगीरथ के पूर्वजों और अन्य मनुष्यों के उद्धार के लिए राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में ही गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। इसलिए इस दिन गंगा दशहरा मनाकर गंगाजी की पूजा अर्चना की जाती है। इस साल गंगा दशहरा विशेष है क्योंकि इस दिन कई विशेष योग भी बन रहे हैं, जिससे इस मुहूर्त में पूजा अर्चना का विशेष फल मिलेगा। साथ ही इस समय किए जाने वाले कार्यों में सफलता मिलेगी। आइये जानते हैं कब से कब तक है गंगा दशहरा और कौन-कौन से शुभ योग बन रहे हैं।

कब है गंगा दशहरा (Kab Hai Ganga Dussehra)


अजमेर की ज्योतिषी नीतिका शर्मा के अनुसार ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत 4 जून की रात को 11: 54 बजे से हो रही है और इसका समापन 6 जून की रात को 2:15 बजे होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार गंगा दशहरा 5 जून को ही मनाया जाएगा।


गंगा दशहरा पर शुभ योग (Ganga Dussehra Shubh Yog)


पंचांग के अनुसार गंगा दशहरा पर कई शुभ योग बन रहे हैं, 5 जून को सुबह 9:14 बजे तक सिद्धि रहेगा। इसके साथ ही रवि योग और हस्त नक्षत्र भी रहेंगे। इसके बाद तैतिल करण दोपहर 1:02 मिनट तक रहेगा। इसके बाद गर करण योग देर रात 2:15 मिनट तक रहेगा। पंचांग के अनुसार इन शुभ योगों में स्नान और दान करना अच्छा माना जाता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पृथ्वी पर अवतरण से पहले कहां था गंगाजी का निवास

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गंगा दशहरा देवी गंगा की पूजा का पर्व है। पृथ्वी पर आने से पहले देवी गंगा भगवान ब्रह्मा के कमंडल में निवास करती थीं। राजा भगीरथ की कठोर तपस्या के बाद गंगा भागीरथ के पूर्वजों की शापित आत्माओं को शुद्ध करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुईं थीं। इस दौरान वो अपने साथ स्वर्ग की पवित्रता को भी पृथ्वी पर लाईं थीं। गंगा दशहरा पर भक्त देवी गंगा की पूजा करते हैं और गंगा स्नान करते हैं। गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान करना और दान-पुण्य करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा में पवित्र स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।


इस दिन को भक्त गंगा के पुनर्जन्म के रूप में सेलिब्रेट करते हैं। क्योंकि भारतीय धर्म ग्रंथों के मुताबिक गंगा सप्तमी पर गंगा जयंती मनाई जाती है। यह भी माना जाता है कि गंगा दशहरा पर दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और कुंडली का ग्रह दोष दूर होता है। साथ ही गंगा की पूजा से सुख समृद्धि मिलती है।

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गंगा पूजा मंत्र

ॐ नमो गंगायै विश्वरुपिणी नारायणी नमो नमः।।


गंगा दशहरा पर गंगा पूजा विधि

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगाजल से स्नान करें
  • सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक करें
  • गंगा दशहरा पर मां गंगा के साथ-साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए
  • माता गंगा और महादेव को पुष्प, चंदन अर्पित करें
  • घी का दीपक जलाएं, भगवान शिव और माता गंगा की आरती और अष्टक गाएं
  • भोग लगाएं, श्री गंगा चालीसा का पाठ करें
  • आखिर में पूजा में जाने अनजाने हुई गलती के लिए क्षमा मांगें

पूजा में पढ़ें शंकराचार्य रचित श्रीगंगाष्टकं
॥ श्रीगंगाष्टकम् ॥


भगवति तव तीरे नीरमात्राशनोऽहं

विगतविषयतृष्णः कृष्णमाराधयामि।

सकलकलुषभङ्गे स्वर्गसोपानसंगे

तरलतरतरङ्गे देवि गंगे प्रसीद॥1॥

भगवति भवलीलामौलिमाले तवाम्भः

कणमणुपरिमाणं प्राणिनो ये स्पृशन्ति।

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अमरनगरनारीचामरग्राहिणीनां

विगतकलिकलङ्कातङ्कमङ्के लुठन्ति॥2॥

ब्रह्माण्डं खण्डयन्ती हरशिरसि जटावल्लिमुल्लासयन्ती

स्वर्लोकादापतन्ती कनकगिरिगुहागण्डशैलात्स्खलन्ती।

क्षोणीपृष्ठे लुठन्ती दुरितचयचमूनिर्भरं भर्त्सयन्ती

पाथोधिं पुरयन्ती सुरनगरसरित्पावनी नः पुनातु॥3॥

मज्जन्मातङ्गकुम्भच्युतमदमदिरामोदमत्तालिजालं

स्नानैः सिद्धाङ्गनानां कुचयुगविगलत्कुङ्कुमासङ्गपिङ्गम्।

सायंप्रातर्मुनीनां कुशकुसुमचयैश्छन्नतीरस्थनीरं

पायान्नो गाङ्गमम्भः करिकलभकराक्रान्तरंहस्तरङ्गम्॥4॥

आदावादिपितामहस्य नियमव्यापारपात्रे जलं

पश्चात्पन्नगशायिनो भगवतः पादोदकं पावनम्।

भूयः शम्भुजटाविभूषणमणिर्जह्नोर्महर्षेरियं

कन्या कल्मषनाशिनी भगवती भागीरथी दृश्यते॥5॥

शैलेन्द्रादवतारिणी निजजले मज्जज्जनोत्तारिणी

पारावारविहारिणी भवभयश्रेणीसमुत्सारिणी।

शेषाहेरनुकारिणी हरशिरोवल्लीदलाकारिणी

काशीप्रान्तविहारिणी विजयते गङ्गा मनोहारिणी॥6॥

कुतो वीचिर्वीचिस्तव यदि गता लोचनपथं

त्वमापीता पीताम्बरपुरनिवासं वितरसि।

त्वदुत्सङ्गे गङ्गे पतति यदि कायस्तनुभृतां

तदा मातः शातक्रतवपदलाभोऽप्यतिलघुः॥7॥

गङ्गे त्रैलोक्यसारे सकलसुरवधूधौतविस्तीर्णतोये

पूर्णब्रह्मस्वरूपे हरिचरणरजोहारिणि स्वर्गमार्गे।

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मातर्जाह्नवि शम्भुसङ्गवलिते मौलौ निधायाञ्जलिं

त्वत्तीरे वपुषोऽवसानसमये नारायणाङ्घ्रिद्वयम्।

सानन्दं स्मरतो भविष्यति मम प्राणप्रयाणोत्सवे

भूयाद्भक्तिरविच्युताहरिहराद्वैतात्मिका शाश्वती॥9॥

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सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति॥10॥

॥ इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितं श्रीगंगाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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