
आगरा की जामा मस्जिद एक विशाल मस्जिद है। देश की सबसे बड़ी मस्जिदों में शामिल आगरा की जामा मस्जिद का इतिहास बहुत ही पुराना है। यह मस्जिद शाहजहां की बेटी शाहजादी जहांआरा बेगम को समर्पित है। बात तब की है जब आगरा में शाहजहां का शासन काल था।
शाहजहां की बेटी जहांआरा ने इबादत के लिए अपने पिता से जामा मस्जिद बनवाने की अनुमति मांगी थी। शाहजहां की अनुमति से 17वी शताब्दी में सन 1643 में इस मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। जो 5 साल तक चला। फिर साल 1648 में यह मस्जिद बनकर तैयार हुई।
मस्जिद की निर्माण की लागत थी 5 लाख रुपए
उस वक्त इस मस्जिद की निर्माण में जो लागत आई थी वह लगभग 5 लाख रुपए थी। फतेहपुर सीकरी का निर्माण इसी मस्जिद के आसपास हुआ था। इससे मस्जिद के महत्व का पता चलता है। मस्जिद का बरामदा बहुत बड़ा है और इसके दोनों ओर जम्मत खाना हॉल और जनाना रौजा हैं।
जामा मस्जिद से सूफी शेख सलीम चिश्ती की मजार पर नजर पड़ती है। पूरी जामा मस्जिद खूबसूरत नक्काशी और रंगीन टाइलों से सजी हुई है। बुलंद दरवाजे से होते हुए जामा मस्जिद तक पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा यहां बादशाही दरवाजा भी है। इसकी खूबसूरती भी देखते ही बनती है।
25 से 30 हजार लोग एक साथ अदाते हैं नमाज
यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि सदियों से लोग इस मस्जिद में नमाज पढ़ने आ रहे हैं। देश की सबसे बड़ी मस्जिदों में इसका नाम शुमार है। इस मस्जिद में 25 से 30 हजार लोग एक साथ बैठ कर नमाज अदा कर सकते हैं। चारों तरफ अब यह घनी आबादी से घिरी हुई है।
इसके बगल में ही आगरा का लाल किला है। लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर पत्थर से इसे तराशा गया है। मस्जिद 130 फुट लम्बी और 100 फुट चौड़ी है। सैकड़ों साल बीत जाने के बावजूद भी इस मस्जिद की खूबसूरती कम नहीं हुई है।
Published on:
26 Mar 2023 09:32 am
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