ये है कहानी
बताया जाता है कि त्रेता युग में भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि की ओर से एक पुत्रेष्टि यज्ञ कराया गया था। इससे प्रसन्न होकर देवराज इंद्र की कृपा से वैशाख शुक्ल तृतीया को पत्नी रेणुका ने भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम को जन्म दिया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार ऋषि जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी की ओर से प्रदत्त परशु के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा। बाद में यह स्थान रेणुका आश्रम के रूप से जाना गया।
बताया जाता है कि त्रेता युग में भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि की ओर से एक पुत्रेष्टि यज्ञ कराया गया था। इससे प्रसन्न होकर देवराज इंद्र की कृपा से वैशाख शुक्ल तृतीया को पत्नी रेणुका ने भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम को जन्म दिया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार ऋषि जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी की ओर से प्रदत्त परशु के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा। बाद में यह स्थान रेणुका आश्रम के रूप से जाना गया।
पिता के कहने पर काटा था मां का सिर
एक खास कथा यहां से जुड़ी हुई है। बताया गया है कि एक बार आश्रम पर यज्ञ का आयोजन किया जा रहा था। यज्ञ के लिए महर्षि जमदग्नि ने पत्नी रेणुका को यमुना तट पर जल लेने के लिए भेजा। यज्ञ का समय बीत जाने के बाद रेणुका जल लेकर पहुंची, जिससे मुनि जमदग्नि क्रोधित हो उठे और परशुराम को मां का सिर काटने की आज्ञा दी। परशुराम ने पिता की आज्ञा के बाद माता का सिर काट दिया, इतना ही नहीं मां को बचाने आए सभी भाइयों का भी वध कर दिया। इसके बाद प्रसन्न हुए मुनि जमदग्नि ने उनसे वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सभी के प्राण वापस मांग लिए और वध संबंधी स्मृति नष्ट होने का भी वरदान मांगा।
एक खास कथा यहां से जुड़ी हुई है। बताया गया है कि एक बार आश्रम पर यज्ञ का आयोजन किया जा रहा था। यज्ञ के लिए महर्षि जमदग्नि ने पत्नी रेणुका को यमुना तट पर जल लेने के लिए भेजा। यज्ञ का समय बीत जाने के बाद रेणुका जल लेकर पहुंची, जिससे मुनि जमदग्नि क्रोधित हो उठे और परशुराम को मां का सिर काटने की आज्ञा दी। परशुराम ने पिता की आज्ञा के बाद माता का सिर काट दिया, इतना ही नहीं मां को बचाने आए सभी भाइयों का भी वध कर दिया। इसके बाद प्रसन्न हुए मुनि जमदग्नि ने उनसे वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सभी के प्राण वापस मांग लिए और वध संबंधी स्मृति नष्ट होने का भी वरदान मांगा।