
Bakra eid
इसलिए मनाई जाती है Bakrid
इस्लाम में बकरीद को कुर्बानी का दिन माना जाता है। बकरीद मनाने के पीछे एक कहानी प्रचलित है। इब्राहिम अलैय सलाम नामक एक व्यक्ति थे उनकी कोई संतान नहीं थी। काफी मन्नतों से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा। मन्नतों के बाद मिला ये पुत्र इब्राहिम अलैय सलाम को सर्वाधिक प्रिय था। एक दिन इब्राहिम को एक सपना आया। सपने में अल्लाह ने उससे सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने के लिए कहा। उन्हें समझ में आ गया कि अल्लाह इस्माइल को मांग रहे हैं। अल्लाह के हुक्म को न मानना उनके लिए मुमकिन नहीं था, लिहाजा वे बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। कुर्बानी देते समय उनकी ममता न जागे इसके लिए इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली, जैसे ही वे बेटे की बलि देने लगे, तभी किसी फरिश्ते ने छुरी के नीचे से इस्माइल को हटाकर एक मेमने को रख दिया। कुर्बानी के बाद जब उन्होंने आंखों से पट्टी हटाई तो देखा इस्माइल सामने खेल रहा है और नीचे मेमने का सिर कटा हुआ है। तब से इस पर्व पर जानवर की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो गया।
बकरे के अलावा दी जाती है ऊंट या भेड़ की कुर्बानी
बकरीद के दिन बकरे की जगह ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है। हालांकि भारत में ऐसा देखने को बहुत कम मिलता है। वहीं कुर्बानी देने के भी कुछ नियम बनाए गए हैं। दुर्बल, बीमारी से ग्रसित व अपंग जानवर की कुर्बानी नहीं दी जाती। एक साल या डेढ़ साल से कम उम्र के जानवर की बलि देना भी गलत माना जाता है। कुर्बानी हमेशा ईद की नमाज के बाद की जाती है। इसके बाद मांस के तीन हिस्से होते हैं। एक खुद के इस्तेमाल के लिए, दूसरा गरीबों के लिए और तीसरा संबंधियों के लिए। ईद के दिन कुर्बानी देने के बाद गरीबों को दान पुण्य भी करना चाहिए।
Updated on:
09 Aug 2018 05:36 pm
Published on:
09 Aug 2018 03:15 pm
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