
devguru brihaspati
आगरा। बृहस्पति आज यानि 11 अक्टूबर से अपना स्थान बदल रहे हैं। बृहस्पति Tula Rashi से वृश्चिक राशि यानी अपने मित्र मंगल की राशि में प्रवेश कर वहां लगभग 13 माह तक रहेंगे। ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि ग्रहों में बृहस्पति (Dev Guru Brihaspati) को गुरु व मंगल को सेनापति कहा जाता है। आमतौर पर बृहस्पति गोचर में दो, पांच, सात, नौ व 11 वें स्थानों में होने पर शुभ फल प्रदान करता है। यह गोचर परिवर्तन वृष, कर्क, कन्या, तुला, मकर व मीन राशि वाले जातकों के लिए विशेष शुभ कारक होगा।
ये बोले ज्योतिषाचार्य
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश तत्व माना गया है, जिससे इसकी विशालता और विकास का संकेत स्पष्ट होता है। चंद्रमा व शुक्र के बाद गुरु सबसे चमकदार ग्रह है। इसकी राशि धनु व मीन है, यह कर्क राशि पर उच्च व मकर राशि पर नीचस्थ हो जाता है। सूर्य, चंद्रमा व मंगल इसके मित्र हैैं, बुध शत्रु व शनि तटस्थ हैं। गुरु पिछले जन्मों के कर्म, धर्म, ज्ञान आदि विषयों को प्रतिरूपित करता है तथा यह स्मृति शिक्षा, राजनीति, मंत्री पद एवं उच्च अभिलाषा आदि का कारक ग्रह है।
होगा ये प्रभाव
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि बृहस्पति मित्र मंगल के घर में प्रवेश कर रहा है परन्तु मंगल ग्रह उष्ण होने से अनुकूल-प्रतिकूल दोनों ही फल देगा। जलवायु में विपरीत परिवर्तन और अवर्षण का योग मिलेगा। छिटपुट वर्षा का योग प्राप्त होगा। सत्ता पक्ष व विपक्ष के मध्य आरोप-प्रत्यारोप का वातावरण रहेगा। घी, तेल, पेट्रोल, डीजल आदि के मूल्य में वृद्धि का क्रम बना रहेगा। दाल व अन्न के भाव में गिरावट आ सकती है। सत्ता पक्ष जनता के हित में अनेक कार्यों की योजना बनाएंगे।
राशियों पर होगा ये प्रभाव
वृषभ- इस गोचरावधि में शुभ समाचारों की प्रप्ति होगी। कार्यों मे चल रहे अवरोध दूर होंगे। मन प्रसन्न एवं प्रफुल्लित रहेगा। उत्साह एवं सकरात्मकता का संचार होगा और नकारात्मक विचार दूर होगें।
मिथुन- गुरू का षष्ठ भाव में गोचर शुभफलदायक नहीं होता। इसके फलस्वरूप कार्यो में बाधांएं, शत्रुजनित समस्याएं, मित्रों एवं परिजनों से वाद-विवाद और असहयेाग, स्वास्थय सम्बन्धी प्रतिकूलता इत्यादि का सामना करना पड़ सकता है।
कर्क - जन्मराशि से पंचम भाव में गुरू का गोचर सामान्यतः प्रसन्नता, सकरात्मकता, उत्साह, में वृद्धि होती है। इस गोचरावधि में शनि का षष्ठ भाव में गोचर रहेगा। जो कि शुभफलदायक है इस प्रकार गोचर में शनि के अनुकूल होने पर गुरू के शुभ गोचरफल भी अधिक मात्रा में प्राप्त होंगे।
सिंह - बृहस्पति का जन्मराशि में चतुर्थ भाव गोचर जहाँ एक ओर विवाह एवं करियर समस्याएं दूर करेगा वही दूसरी ओर स्वास्थय, सम्पत्ति एवं पारिवारिक सुख की दृष्टि से कुछ परेशानीदायक भी हो सकता है।
कन्या- जन्म से तृतीय भाव में गुरू का गोचर सर्वाधिक अशुभफलप्रद माना जाता है यह प्रायः सभी क्षेत्रों में अशुभफल प्रदान करता है इसका प्रतिवेद स्थान द्वितीय भाव है। इस प्रकार तुला राशि में जब-जब नया ग्रह का गोचर होगा, तब-तब गुरू के अशुभ फलों में कमी का अनुभव भी होगा।
तुला - जन्मराशि से द्वितीय भाव में गुरू का गोचर शुभफलदायक होता है। प्राय‘ सभी क्षेत्रों में शुभ फल प्राप्त होते हैं और रूके हुए कार्यो में प्रगति होगी। उत्साह एवं पराक्रम बढ-चढा रहेगा। आत्मविश्वास बढ़ेगा एवं पहल करने की क्षमता में वृद्धि होगी। इस गोचरावधि के दौरान शनि का गोचर तृतीय भाव में रहेगा। फलतः शनि के शुभफलों में भी वृद्धि होगी।
वृश्चिक - ज्योतिषीय ग्रन्थों के अनुसार जन्मराशि के ऊपर से गुरू का गोचर सामान्यतः शुभ फलदायक नही होता परन्तु व्यवहार में यह कुछ क्षेत्रों में शुभफलदायक, तो कुछ क्षेत्रों में अशुभ फलदायक होता है। जन्मराशि अथवा जन्मकालिक गुरू के ऊपर से गुरू का गोचर जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आता है। ये परिवर्तन शुभ भी हो सकते है और अशुभ भी सामान्यतः जन्मराशि के ऊपर से गुरू का गोचर कार्यो में बाधाकारक प्रतिकूल फलदायक एवं स्वास्थय आदि के क्षेत्र में परेशानी पैदा कर सकता है।
धनु- जन्मराशि से द्वादश भाव में गुरू का गोचर सामान्यतः शुभ फलदायक नही होता यह आकस्मिक समस्यांए उत्पन्न करने वाला होता है। विभिन्न क्षेत्रों में अवरोध आकस्मिक समस्याओं से प्रगति बाधित होती है।
मकर - जन्मराशि से एकादश में भाव में गुरू को गोचर प्राय: सभी क्षेत्रों में शुभफलदायक रहता है। इस गोचरावधि में अवरूद्ध कार्यो में प्रगति होगी तथा उनमे सफलता प्राप्ति के अवसरों में वृद्धि होगी। परिजनों एवं मित्रों का अपोक्षित सहयोग प्राप्त होगा। वहीं भाग्य का भी पर्याप्त सहारा मिलेगा। इस गोचर अवधि में पराक्रम में वृद्धि इत्यादि शुभ फल भी प्राप्त होंगे। एकादश भाव का वेध स्थान अष्टम भाव हैै। गुरू का इस गोचरावधि के दौरान शनि का गोचर द्वादश भाव में रहेगा। जो कि साढे़साती के प्रभाव देने वाला रहेगा। गुरू के शुभ गोचर के प्रभाव से शनि की साढेसाती के अशुभ प्रभावों में भी कमी आएगी।
कुम्भ - जन्मराशि से दशम भाव में गुरू के गोचर को अशुभफलदायक बताया गया है। इसके फलस्वरूप नौकरी एवं व्यवसाय में अवरोध, सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद, माता-पिता के सुख में कमी, गृहक्लेश की अधिकता रहेगी ।
मीन - मीन राशि वाले जातकों के लिए गुरू का गोचर प्रायः सभी क्षेत्रों में शुभ फलदायक है। रूके हुए कार्यो में प्रगति होगी तथा अपेक्षित सफलता भी प्राप्त होगी। उत्साह में वृद्धि होगी तथा विचार सकारात्मक होंगे। शान्ति एवं विनम्रता का प्रभाव बढ़ेगा।
Updated on:
11 Oct 2018 12:48 pm
Published on:
11 Oct 2018 08:54 am
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