42 वर्ष पुराना किस्सा
वर्ष 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी बतौर विदेश मंत्री ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन के स्वागत के लिए आगरा आए थे। उस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन ताजमहल का दीदार करने ताजनगरी आए थे। जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन ताजमहल के अंदर गए, तो उनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी ने ताजमहल के अंदर प्रवेश करने से मना कर दिया और रॉयल गेट पर एक कुर्सी डालकर बैठ गए। ताजमहल देखने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री दोनों ने विजिटर बुक के एक पेज पर अपने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन देशभर में अजूबा मानी जाने वाली इस बेश्कीमती इमारत पर कोई टिप्पणी नहीं की। उस समय एएसआई के एक अधिकारी ने अटल बिहारी वाजपेयी से ताजमहल को लेकर कुछ शब्द लिखने का आग्रह किया तो उन्होंने साफतौर पर इंकार कर दिया। इसके बाद मुस्कुराते हुए कहा कि ताज पर मेरी लिखी कविता पढ़ लेना।
वर्ष 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी बतौर विदेश मंत्री ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन के स्वागत के लिए आगरा आए थे। उस समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन ताजमहल का दीदार करने ताजनगरी आए थे। जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन ताजमहल के अंदर गए, तो उनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी ने ताजमहल के अंदर प्रवेश करने से मना कर दिया और रॉयल गेट पर एक कुर्सी डालकर बैठ गए। ताजमहल देखने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री दोनों ने विजिटर बुक के एक पेज पर अपने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन देशभर में अजूबा मानी जाने वाली इस बेश्कीमती इमारत पर कोई टिप्पणी नहीं की। उस समय एएसआई के एक अधिकारी ने अटल बिहारी वाजपेयी से ताजमहल को लेकर कुछ शब्द लिखने का आग्रह किया तो उन्होंने साफतौर पर इंकार कर दिया। इसके बाद मुस्कुराते हुए कहा कि ताज पर मेरी लिखी कविता पढ़ लेना।
कविता में किया है मजदूरों के दर्द का बखान
दुनियाभर से बेशक लोग ताजमहल की खूबसूरती को निहारने आते हों, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी खूबसूरती में दबे तमाम मजदूरों के दर्द को महसूस किया है। उन्होंने ताजमहल पर लिखी कविता में इसकी खूबसूरती का कोई जिक्र नहीं किया बल्कि मजदूरों का दर्द बयां करते हुए लिखा है…
दुनियाभर से बेशक लोग ताजमहल की खूबसूरती को निहारने आते हों, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी खूबसूरती में दबे तमाम मजदूरों के दर्द को महसूस किया है। उन्होंने ताजमहल पर लिखी कविता में इसकी खूबसूरती का कोई जिक्र नहीं किया बल्कि मजदूरों का दर्द बयां करते हुए लिखा है…
‘यह ताजमहल, यह ताजमहल
यमुना की रोती धार विकल
कल कल चल चल
जब रोया हिंदुस्तान सकल
तब बन पाया ताजमहल
यह ताजमहल, यह ताजमहल’