
Ganesh Chaturthi
हर साल गणेशोत्सव को Ganesh Chaturthi से लेकर Anant Chaudas तक गणपति भगवान के जन्मदिन के रूप मेें मनाया जाता है। इस बार गणेशोत्सव 25 अगस्त से शुरू हो रहा है और 5 सितंबर तक चलेगा। हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला ये पर्व विशेष संयोग लेकर आ रहा है। इस बार 58 साल बाद ऐसा योग बना है जब गणपति शनि के मार्गीय होने पर घर मेंं विराजेंगे। वर्ष 1959 के बाद अब जाकर ये संयोग आया है। इसका सभी राशियों पर सकारात्मक असर पड़ेगा। इस अलावा ये त्योहार हस्त नक्षत्र में पड़ रहा है जो कि बेहद शुभ माना जाता है। वहीं इस साल दो दशमी होने के कारण गणपति बप्पा दस दिनों तक घरों में विराजमान रहेंगे।
शुभ समय व मुहुर्त
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरबिंद मिश्र के मुताबिक Ganesh Chaturthi के दिन 8:24 बजे के बाद भद्रा लग जाएगी और रात तक चलेगी। भद्रा में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। इसलिए गणपति की स्थापना भद्रा लगने से पहले ही करें। इसके लिए शुभ समय 5:20 मिनट से शुरू होकर 8:24 बजे तक है। वहीं बहुत से लोग माध्यान्ह में गणपति की स्थापना करते हैं क्योंकि गणपति का जन्म मध्यान्ह काल में हुआ था। ऐसी मान्यता को मानने वाले लोग सुबह 11.05 से लेकर दोपहर 01.39 बजे के बीच गणपति को विराजमान कर सकते हैं।
ईशानकोण में बैठाएं गणपति को
गणपति जी मिट्टी की ही मूर्ति लेकर आएं जो विसर्जित करने पर पानी में घुल जाए और इससे किसी जल जीव को नुकसान न पहुंचे। घर लाकर मूर्ति को ईशानकोण यानी उत्तर—पूर्व दिशा में ऐसे स्थापित करें कि गणपति की मूर्ति का मुख दक्षिण में रहे। दक्षिण दिशा में राक्षसों का वास माना जाता है और गणपति शुभ का प्रतीक हैं। ऐसा करने से संकट और विघ्न नहीं आते। गणपति उनसे रक्षा करते हैं। स्थापना करने से पहले उस स्थान पर स्वास्तिक बनाएं और पीले चावल बिछाएं। कलश ईशानकोण में स्थापित करें व दीपक को अग्निकोण में रखें। नवग्रह भी बनाएं। पूजा के दौरान सभी देवी देवताओं, नदियों, पितृों और नवग्रह आदि का आवाहन करके पूजा करें। गणपति बप्पा को पान के पत्ते पर बूंदी या बेसन के लड्डू और दूब घास रखकर भोग लगाएं और जोरदार ढंग से आरती गाकर उनका स्वागत करें।
मोदक का भोग लगाने से प्रसन्न होंगे विनायक, जानें क्यों
इस पूरे प्रकरण के पीछे गणेश और माता अनुसुइया की कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार गणपति भगवान शिव और माता पार्वती के साथ अनुसुइया के घर गए। उस समय गणपति, भगवान शिव और माता पार्वती तीनों को काफी भूख लगी थी तो माता अनुसुइया ने भोलेनाथ से कहा कि मैं पहले बाल गणेश को भोजन करा दूं, बाद में आप लोगों को कुछ खाने को देती हूं। वह लगातार काफी देर तक गणपति को भोजन कराती रहीं, लेकिन फिर भी उनकी भूख शांत नहीं हो रही थी, इससे वहां उपस्थित सभी लोग हैरान थे। इधर भोलेनाथ अपनी भूख को नियंत्रित किए बैठे थे।
आखिर में अनुसुइया ने सोचा कि उन्हें कुछ मीठा खिलाया जाए। भारी होने के कारण मीठे से शायद गणपति की भूख मिट जाए। ये सोचकर उन्होंने गणेश भगवान को मिठाई का एक टुकड़ा दिया, जिसको खाने के बाद उन्होंने जोर से एक डकार ली और उनकी भूख शांत हो गई। उसी समय भोलेनाथ ने भी जोर जोर से 21 बार डकार ली और कहा उनका पेट भर गया है। बाद में देवी पार्वती ने अनुसूया से उस मिठाई का नाम पूछा जो उन्होंने बाल गणेश को परोसी थी। तब माता अनुसुइया ने कहा कि इस मिठाई को मोदक कहते हैं। तब से भगवान गणेश को 21 मोदक का भोग लगाने की परंपरा शुरू हो गई। माना जाता है कि ऐसा करने से गणपति के साथ—साथ सभी देवताओं का पेट भरता है और वे प्रसन्न होते हैं।
Ganesh Chaturthi के दिन न देखें चंद्रमा
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा देखने से मना किया जाता है। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है कि एक दिन गणपति चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र ने उन्हें देख लिया और हंसने लगे। चंद्रमा को हंसी उड़ाते देख गणपति को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि अब से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा। जो तुम्हे देखेगा वह कलंकित हो जाएगा। इस श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए। तब सभी देवताओं ने गणपति की साथ मिलकर पूजा अर्चना कर उनका आवाह्न किया तो गणपति ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। तब देवताओं ने विनती की कि आप गणेश को श्राप मुक्त कर दो। तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकता हूं। भगवान गणेश ने कहा कि चंद्र का ये श्राप सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा। इसलिए चतुर्थी के दिन यदि अनजाने में चंद्र के दर्शन हो भी जाएं तो इससे बचने के लिए छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंके। ऐसा करने से चंद्र दर्शन से लगने वाले कलंक से बचाव हो सकता है। इसलिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है।
Published on:
24 Aug 2017 01:36 pm
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