
गुरु
शिष्य गुरु के पास आकर बोला, गुरु जी हमेशा लोग प्रश्न करते है कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता?
मेरे मन में भी यह प्रश्न चक्कर लगा रहा है।
गुरु समयज्ञ थे, बोले- वत्स! जाओ, एक घड़ा मदिरा ले आओ।
शिष्य मदिरा का नाम सुनते ही आवाक् रह गया।
गुरू और शराब!
वह सोचता ही रह गया।
गुरु ने कहा सोचते क्या हो? जाओ एक घड़ा मदिरा ले आओ। वह गया और एक छलाछल भरा मदिरा का घड़ा ले आया।
गुरु के समक्ष रख बोला-
“आज्ञा का पालन कर लिया"
गुरु बोले –
“यह सारी मदिरा पी लो” ।
शिष्य अचंभित!!
गुरु ने कहा,
शिष्य! एक बात का ध्यान रखना, पीना पर शीघ्र कुल्ला थूक देना, गले के नीचे मत उतारना।
शिष्य ने वही किया,
शराब मुंह में भरकर तत्काल थूक देता, देखते देखते घड़ा खाली हो गया।
आकर कहा- “गुरुदेव घड़ा खाली हो गया”,
“तुझे नशा आया या नहीं?”
पूछा गुरु ने?
गुरुदेव! नशा तो बिल्कुल नहीं आया।
अरे मदिरा का पूरा घड़ा खाली कर गये और नशा नहीं चढ़ा?
गुरुदेव नशा तो तब आता जब मदिरा गले से नीचे उतरती, गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई फ़िर नशा कैसे चढ़ता।
बस फिर सत्संग को भी ऊपर ऊपर से जान लेते हो, सुन लेते हो, गले के नीचे तो उतरता ही नहीं, व्यवहार में आता नहीं तो प्रभाव कैसे पड़े।
सीख
गुरु के वचन को केवल कानों से नहीं, मन की गहराई से सुनना, एक-एक वचन को ह्रदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही, गुरु के वचनों का सम्मान है ।
पांच पहर धंधा किया
तीन पहर गए सोय
एक घड़ी ना सत्संग किया
तो मुक्ति कहाँ से होय।
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प्रस्तुतिः दीपक डावर
Published on:
07 Oct 2018 07:29 am
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