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मुसलमानों का पवित्र त्योहार ईद-उल-अजहा (Eid-Ul-Adha) यानी बकरीद 22 अगस्त को है। इसकी तैयारियों को लेकर बाजार में भी रौनक दिखने लगी है। बकरीद के दिन मुसलमानों के घरों में बकरे की कुर्बानी देने की प्रथा है। इस प्रथा की शुरुआत इब्राहिम अलैय सलाम ने की थी। जब अल्लाह ने उनसे सपने में सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी तो वे अल्लाह की खातिर अपने इकलौते बेटे इस्माइल की बलि देने को तैयार हो गए थे। बलि देते समय उन्होंने आंख पर पट्टी बांध रखी थी। इसके बाद फरिश्तों ने छुरी के नीचे उनके बेटे की जगह मेमना रख दिया। जब इब्राहिम ने पट्टी हटाई तो उनका बच्चा सुरक्षित खेल रहा था और एक मेमने का सिर अलग था। तब से बकरे की बलि देने की शुरुआत हुई। इन्हीं इब्राहिम और इस्माइल ने बाद में मक्का में स्थित काबा का निर्माण कराया था जिसे आज मुसलमानों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल माना जाता है। बकरीद के इस मौके पर जानते हैं काबा का महत्व व अन्य जानकारियां।
अल्लाह का घर कहलाता है काबा
कुरआन में हर मुसलमान को जीवन में एक बार मक्का की यात्रा करने के लिए प्रेरित किया गया है। मक्का में काबा स्थित है। इसे अल्लाह का घर यानी बैतुल्ला कहा जाता है। कुरआन में काबा को जन्नत बताते हुए कहा गया है कि हर रोज कम से कम 70 हजार फरिश्ते काबा की परिक्रमा करते हैं।
इब्राहिम और इस्माइल ने तैयार कराया था काबा
बताया जाता है कि जब इब्राहिम अल्लाह की खातिर अपने सबसे अजीज और इकलौते पुत्र इस्माइल की बलि दे रहे थे तो अल्लाह उनसे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने दोनों कोे अपना पैगंबर बना लिया और उनसे अपने लिए एक घर बनवाने के लिए कहा। इसके बाद दोनों ने काबा का निर्माण कराया।
कमरे की तरह बना है काबा
मक्का स्थित काबा एक कमरे की तरह बना हुआ है जिसके अंदर दो स्तंभ हैं। एक तरफ मेज रखी गयी है जहां लोग इत्र डालते हैं। काबा के अंदर लालटेन जैसे दो दीपक छत से लटकते हुए दिख जाते हैं। दीवारें और फर्श संगमरमर के बने हुए हैं। इसके अंदर एक बार में करीब 50 लोग जा सकते हैं। काबा के अंदर की उपरी दीवारों में पर्दे लगे हुए हैं, जिन पर कलीमा लिखकर कवर कर दिया गया है। काबा की चाबियां शैबा परिवार के पास रहती हैं। इसके अंदर जाने के लिए शैबा परिवार की मंजूरी जरूरी है।
Updated on:
21 Aug 2018 12:53 pm
Published on:
21 Aug 2018 09:59 am
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