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जानिए कैसे पड़ा श्रीकृष्ण का नाम रणछोड़ दास

श्रीमद्भागवत कथा में हुआ महारास, कंसवध, कृष्ण-रुक्मणी विवाह, कुबजा उद्धार की कथा का संगीतमय वर्णन, परमआनंद है महारास, जिसमें प्रवेश पाने के लिए पार करनी पड़ती हैं साधना और भक्ति जैसी कई सीढ़ियां

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आगरा

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Abhishek Saxena

Dec 19, 2018

maharas

जानिए कैसे पड़ा श्रीकृष्ण का नाम रणछोड़ दास

आगरा। श्रीकृष्ण का एक नाम रणछोड़ दास भी है। राजा जरासंध से युद्ध में 17 बार विजय होने पर राजा जरासंध ने 18वीं बार अपनी सेना के आगे हजारों ब्राह्मणों को खड़ा कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्ममों का हत्या का पाप न करने के कारण युद्ध छोड़कर भाग गए। इसलिए उनका नाम रणछोड़ दास पड़ा। भगवताचार्य पवन नंदन ने बताया कि यह गलती भारतवर्ष के राजाओं ने कई बार दोहराई। मोहम्मद गजनवी ने कई बार भारतीय राजाओं से हारने के बाद सेना के आगे गायों को खड़ा कर दिया, जिससे भारतीय राजाओं ने हथियार डाल दिए। धर्म के मर्म को समझने के लिए उन्होंने धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। कहा कि धर्म तुम्हारी रक्षा तभी करेगा जब तुम धर्म की रक्षा करोगे। हिन्दी भाषा के प्रति प्रेरित करते हुए न्होंने हर घर में गीता व रामायण अवश्य होने की भी बात कही। घर में धर्म ग्रंथ होने से घर पवित्र रहता है।

बताई महारास की महिमा
महारास केवल नृत्य नहीं। यह वो परमअवस्था है जो जीव का परमात्मा से मिलन कराती है। रास की कथा को समझाकर नहीं बताया जा सकता। क्योंकि यह परमआनन्द का विषय है। जहां केवल नृत्यक और भंगिमा नहीं अपितु नृत्य के साथ भाव का होना परमआवश्यक। जिसमें सिर्फ नृत्य हो भाव नहीं वह महारास नहीं। लेकिन इस परमानन्द में प्रवेश करने के लिए कई सीढ़ियों को पार करना पड़ता है। पहली सीढ़ी भागवत कथा है। दूसरी भक्ति और तीसरी सहज, सरल और सुलभ गुरु की प्राप्ति। जयपुर हाउस स्थित श्रीराम पार्क में मंगलमय परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में व्यास पीठ पर विराजमान आचार्य पवन नन्दन जी ने कथा में गोकुल में देखो वृन्दावन में देखो, श्याम संग राधा नाचे रे... व जाने कैसा जादू डारा, राधा हो गई हर बृजबाला... जैसे भजनों के माध्यम से महारास का सचित्र व संगीतमय वर्णन किया तो सभी भक्तजन भी श्रीहरि की भक्ति में डूबकर झूमने और नाचने लगे।

कंस की दासी के उद्धार की कथा
कंस की दासी कुबजा उद्धार की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि कंस अभिमान का प्रतीक और कुबजा बुद्धि की प्रतीक थी। अर्थात बुद्धि के साथ भिमान हो तो वह कुरुपता के रूप में नजर आती है। इसलिए जब कुबजा श्रीकृष्ण की शरण में आई तो वह कुबड़ी से सुंदर स्त्री बन गई। आचार्य पवन नन्दन जी ने कंसवध, वासुदेव-देवकी व महाराजा उग्रसेन को जेल से मुक्त कराकर सिंहासन पर बैठाने की कथा सुनाई। महारास में जहां हर भक्त मरमानन्द हो गया वहीं श्रीकृष्ण का संदेश लेकर वृंदावन पहुंचने पर राधा, गोपियों व उद्धव जी के बीच संवाद को सुन हर भक्त की आंख से अश्रु बहने लगे। मार्मिक कता के माध्यम से बताया कि अक्रूर जी के ज्ञान का अहंकार किस तरह टूटा। क्योंकि प्रेम में वह ज्ञान होता है जो बड़े-बड़े ज्ञानियों में नहीं होता। श्रीकृष्ण व रुक्मणी विवाह की कथा का भी भक्तों ने आनंद लिया। शाम को कथा स्थल पर देवी जागरण का आयोजन किया गया। जिसमें सभी भक्तों ने माता की ज्योत में आहूति देकर आशीर्वाद प्राप्त किया।

आज होगा समापन
20 दिसम्बर गुरुवार को श्रीमद्भागवत कथा दोपहर 12 बजे से प्रारम्भ होकर 2 बजे समाप्त होगी। इसके बाद भंडारे का आयोजन किया जाएगा।

ये रहे मौजूद
श्रीमद्भागवत कथा में मंगलमय परिवार के अध्यक्ष दिनेश बंसल, कातिब, महामंत्री राकेश कुमार अग्रवाल, कोषाध्यक्ष महावीर मंगल, प्रवीन अग्रवाल, घनश्यामदास अग्रवाल, महेश गोयल, बीडी अग्रवाल, राकेश जैन, हेमन्त भोजवानी, रूपकिशोर अग्रवाल, कमल नयन मित्तल, मुरारीप्रसाद अग्रवाल, खेमचंद गोयल, ओमप्रकाश अग्रवाल, अजय गोयल, विजय अग्रवाल, अशोक कुमार गर्ग, मुन्नालाल बंसल आदि उपस्थित थे।